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________________ .. अपभ्रंश कथा : परिभाषा, व्याप्ति और वर्गीकरण : २३७ गायकुमारचरिउ यह काव्य' भी जसहरचरिउ के रचयिता कविवर पुष्पदन्त द्वारा ९. सन्धियों में रचित है । यह काव्य कथा की दृष्टि से मूलतः प्रेमाख्यान ही है। इसको कथा संक्षेप में इस प्रकार है : ___ इस ग्रन्थ का आरम्भ वाग्देवी सरस्वती की वंदना से होता है। ग्रन्थकार ने लिखा है कि मान्यखेट के राजा कृष्णराज वल्लभराज के मन्त्री नन्त्र की प्रेरणा से उन्होंने इस ग्रन्थ की रचना की। कवि ने मगध देश और राजगह तथा उसके राजा का सुन्दर वर्णन किया है। एक बार तीर्थंकर महावीर राजगह पधारे। वहाँ के राजा श्रेणिक भगवान् के दर्शनार्थ उनके समीप पहुँचे। श्रेणिक ने महावीर से श्रीपंचमीव्रत का माहात्म्य पूछा । भगवान् के गणधर गौतम ने राजा के समाधानार्थ एक कथा सुनाई। ___ प्राचीनकाल में मगध देश में कनकपुर नाम का एक नगर था । वहाँ राजा जयन्धर अपनी रानी विशालनेत्रा के साथ राज्य करता था। रानी को श्रीधर नाम का एक पुत्र था। एक बार वासव नाम का व्यापारी अपनी : व्यापार-यात्रा से लौटा और राजा को अनेक उपहारों के साथ एक सुन्दरी का चित्र भेंट किया। राजा ने व्यापारी से चित्र के विषय में पूछा तो पता चला कि वह चित्र सौराष्ट्र में गिरिनगर के राजा को पुत्री पृथ्वीदेवी का है। राजा चित्र पर मुग्ध हो जाता है। व्यापारी ने बताया कि गिरिनगर का राजा इस राजकुमारी का विवाह आपसे करना चाहता है तो राजा उस व्यापारी और अपने मन्त्री को विविध उपहारों के साथ गिरिनगर भेजते हैं। वे राजकुमारी को कनकपुर लाते हैं और राजसी अट-बाट के साथ विवाह होता है। . एक दिन राजा अपनो रानियों के साथ आनन्दोद्यान में गया । दोनों रानियों में से नवीन रानी पृथ्वीदेवी राजा की पहली रानी को देख चौंक उठी। उसे ईर्ष्या हो गई और वह उद्यान में न ठहर जिनमंदिर में चली गई। वहाँ उसने जिनेन्द्रदेव की पूजा की तथा मुनि पिहिताश्रव ___१. डा० हीरालाल जैन द्वारा संपादित, जैन सिरीज, कारंजा से १९३३ में प्रकाशित.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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