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________________ ___ अपभ्रंश कथा : परिभाषा, व्याप्ति और वर्गीकरण : २३५ उठा और तलवार से दोनों को मारने का निश्चय किया। परन्तु उसने निश्चय बदल दिया और लौट आया। रानी भी भोर से पूर्व अपने विस्तर पर पहुँच गई। यशोधर को इस घटना से धक्का लगा और उसने राज्य छोड़ने का विचार बना लिया। दूसरे दिन उसने अपनी मां से कहा कि उसने एक बुरा स्वप्न देखा है अतः उसे साधु हो जाना चाहिए अन्यथा वह मर जाएगा। माता ने उसे बुरे स्वप्न का प्रभाव समाप्त करने के लिए देवी को एक जानवर की बलि देने की सलाह दी। राजा ने इसे उचित नहीं माना। अतः एक आटे का मुर्गा बनाकर देवी को बलि चढ़ाई गई और उसे सबने खाया। लेकिन राजा घर लौटा और उसने अपने पुत्र को राज्य सौंपकर जंगल में जाने का निश्चय किया। यह सुनकर रानी ने राजा से कहा कि वह एक दावत का प्रबन्ध कर रही है, तत्पश्चात् राजा के साथ वे भी चलेंगी। राजा ने स्वीकार कर लिया। रानी ने राजा तथा उसकी माता को विष दे दिया। विष के प्रभाव से दोनों की मत्य हो गई। यशोधर के पुत्र जसवई ने जब यह देखा तो उनका संस्कार उत्तम रीति से किया जिससे कि उन्हें सुगति मिले। परन्तु इस .:: जन्म में उन्होंने आटे के मुर्ग को बलि दी थी अतः दूसरे जन्म में यशोधर को मयूर और चन्द्रमती. को जंगल के कुत्ते का जन्म मिला। मयूर को एक जंगली ने पकड़कर राजा जसवई को भेंट किया। मयूर ने अपनी पूर्वभव को रानी को आनन्द को जिन्दगी बिताते देखा तो उस पर और उसके प्रेमी पर आक्रमण कर दिया। फलस्वरूप रानी ने मयूर की टांग तोड़ दी। उसकी लड़की मयूर का पीछा करती । पूर्वभव की चन्द्रमतो, जिसे कुत्ता का जन्म मिला था, आई और उसे मार डाला। राजा जसवई ने जब सुना तो उन्होंने कुत्ते को मार डाला। इस प्रकार अगले भव में यशोधर को नकूल और चन्द्रमती को सर्प का जन्म मिला। जंगल में नकुल ने सर्प को और नकुल को सुअर ने मार डाला । फलतः अगले भव में यशोधर को क्षिप्रा नदी में मछली और माता चन्द्रमती को मगरमच्छ का जन्म मिला। मगर ने मछली को पकड़ना चाहा ही था कि महल को राजकुमारी जलक्रीड़ा के लिए वहाँ आई और मगर द्वारा पकड़ी गई। मछली मगर से तो बच गई परन्तु जाल द्वारा मगर और मछली दोनों पकड़े गए। मगर मार डाला गया और मछली
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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