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२३४ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक कारियों को प्राणियों के जोड़ों का प्रबन्ध करने का आदेश दे दिया। अधिकारियों ने सभी प्राणियों के जोड़ों का प्रबन्ध कर दिया परन्तु मानवजोड़े का प्रबन्ध नहीं हो सका।
इसी अवसर पर सुदत्त नामक जैन मुनि अपने अभयरुचि एवं अभयमति नाम के शिष्यों के साथ नगर के समीप एक बगीचे में पधारे। क्षुल्लकावस्था के शिष्य अभयरुचि और अभयमति ने अपने गुरु से नगर में भिक्षा के लिए जाने की आज्ञा ली। वे दोनों नगर में भ्रमण कर ही रहे थे कि राजा के कर्मचारियों द्वारा पकड लिये गये और देवी चण्डमारी के मन्दिर में बलि हेतु ले जाये गये। क्षुल्लकों ने गम्भीरता से राजा को आशीर्वाद दिया। उनकी आवाज ने राजा को आकर्षित एवं प्रभावित किया। राजा ने उनसे पूछा कि क्या वे किसी राजपरिवार से आये हैं और क्यों इतनी कम अवस्था में कठोर व्रत लिया है ? इस पर क्षुल्लक . बालक ने कहा-इस भारतवर्ष में अवन्ती नामक देश की उज्जैनी राजधानी है। वहाँ यशोबन्धु नामक राजा राज्य करता था। उसके पुत्र यशोह ने राज्य संभाला और राजा अजितनाग की सुन्दर कन्या चन्द्रमती से विवाह किया। मेरा नाम यशोधर था और मैं इन्हीं दोनों का पुत्र था। सभी कलाओं में दक्षता प्राप्त करने के साथ मेरा विवाह क्रथकेशिका की राजकुमारी एवं अन्य राजकुमारियों के साथ हो गया। पिता यशोह ने अपने बालों को श्वेत होते देखा तो उन्हें वैराग्य हो गया और उन्होंने यशोधर को राज्य सौंप दिया। यशोधर ने पृथ्वी पर अपना सुदृढ़ राज्य स्थापित किया और सुख से रहने लगा।
यशोधर अत्यधिक भोग-विलासी जीवन व्यतीत करने लगा। एक दिन पूर्णिमा की अर्धरात्रि में यशोधर अपनी रानी अमृतमतो के पास गया। जब यशोधर को नींद आ गई तो रानी अमृतमती उसकी भुजपाश को अलग करके अपने प्रेमी के पास गई जो कि एक कुरूप व्यक्ति था। राजा को निद्रा तत्काल भंग हो गई थी अतः हाथ में तलवार लेकर रानी का पीछा किया। रानी उस कुरूप व्यक्ति के पैरों पर गिरकर उसे प्रसन्न कर रही थी परन्तु वह दुत्कार रहा था कि इतना विलम्ब क्यों हुआ? इतना कहकर उसने रानो को एक ठोकर लगाई। रानी ने तब भी उसे अपनी सफाई दी कि वह अपने राजा पति की मृत्यु के लिए देवी की पूजा कर रही थी। इस सबको राजा ने देखा तो क्रोध से कॉप