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अपभ्रंश कथा : परिभाषा, व्याप्ति और वर्गीकरण : २३३
इच्छा बलवती होती है। अतः भविष्यदत्त अपने माता-पिता, सुमित्रा आदि को लेकर मैनाक द्वीप की यात्रा पर निकल पड़ता है। मैनाक द्वीप पर उन्हें एक जैन मुनि के दर्शन होते हैं। वे उन्हें धर्मोपदेश देते हैं। वहाँ कुछ दिन रहने के पश्चात् वे सब अपने घर वापिस आ जाते हैं। एक बार मुनि विमलबुद्धि वहाँ आते हैं। भविष्यदत्त उनके दर्शनों को जाता है तो मुनि ने धर्मोपदेश के साथ उसके पूर्व भव की कथा सुनाई। भविष्यदत्त को वैराग्य हो जाता है और वह अपने पुत्र को राज्यभार सौंपकर स्वयं जंगल चला जाता है। उसकी पत्नियाँ एवं माता भी उसी के साथ तपस्या करती हैं । अन्त में समाधिमरण होता है और उच्चपद प्राप्त करके मोक्ष हो जाता है। कथा के अन्त में श्रुतपंचमी का माहात्म्य बताया गया है। जसहरचरिउ
इस चरितकाव्य' के रचयिता पुष्पदन्त १०वीं शताब्दी के कवि माने जाते हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ चार सन्धियों में समाप्त है। कथा का अंतिम उद्देश्य अहिंसा के माहात्म्य को सिद्ध करना है। ग्रन्थ को कथा संक्षेप में इस प्रकार है : .
अन्य चरितकाव्यों के समान मंगलाचरण, जिनस्तुति के बाद कथा प्रारम्भ होती है । यौधेय नामक एक रमणीक देश था जिसकी राजधानी राजपुरं थी। इसका मारिदत्त नामक राजा था जो अपना अधिकांश समय रानियों के साथ विलास में व्यतीत करता था। एक दिन भैरवानन्द नामक कापालिकाचार्य यात्रा करते हुए उस राजधानी में आये । वे नगरी में अपने धर्म का प्रचार करते थे तथा उन्होंने घोषणा की कि उन्हें दैवीय . शक्ति प्राप्त है। वे सूर्य-चन्द्र को भी अपनी आज्ञानुसार चला सकते हैं, यह खबर राजा मारिदत्त को मिली। राजा ने ससम्मान भैरवानन्द को दरबार में आमन्त्रित किया। भैरवानन्द से राजा ने वायुगमन की शक्ति प्राप्त करने की प्रार्थना की। भैरवानन्द ने राजा से कहा कि यदि वह मनुष्यसहित सभी प्राणियों के जीवित जोड़ों की बलि देवी चंडमारी को दे तो उसे दिव्यशक्ति अवश्य प्राप्त होगी। राजा ने अपने राज्याधि८२. पी० एल० वैद्य द्वारा संपादित, कारंजा जैन सिरीज में १९३१ में . प्रकाशित.