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________________ २३२ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक में डाल दे। नौकाओं से यात्रा प्रारम्भ हुई। कुछ दिन बाद अचानक समुद्र में तूफान आ गया और किसी प्रकार ये लोग तिलक द्वीप के किनारे पहुँच गए । भविष्यदत्त को बंधुदत्त ने धोखे से यहीं छोड़ दिया और स्वयं आगे चल पड़ा। भविष्यदत्त परेशान होता हुआ एक श्रेष्ठ नगरी में पहुँचा परन्तु वह .. जनशन्य थी । वहाँ उसने एक अतीव सुन्दरो कन्या को देखा। एक राक्षस ने आकर दोनों का परिणय कराया। बारह वर्ष तक आनन्दपूर्वक वह . उस नगरी में रहा। उसके बाद अपार धन-सम्पत्ति के साथ वे समुद्र के. किनारे पर पहुँचे और किसी जहाज की खोज में थे। एकाएक बंधुदत्त व्यापार में असफल लौटता हुआ वहां आ पहुँचा । उसने भविष्यदत्त से अपने पूर्व कृत्य के लिए क्षमा याचना की। भविष्यदत्त ने सब सामान जहाज पर लाद दिया। अपनी पत्नी को भी बैठा दिया। स्वयं जहाज में बंठने से पूर्व जिनमंदिर में दर्शन करने गया। इसी बीच बंधुदत्त ने जहाज चलवा दिया। बंधुदत्त ने घर आकर भविष्यदत्त की पत्नी को अपनी पत्नी बताया और विवाह की तिथि आदि निश्चित कर ली। भविष्यदत्त उधर जिन भगवान् का पूजन करने लगता है। इधर भविष्यदत्त की माँ श्रुतपंचमी का व्रत रखती है। इन दोनों के धर्मप्रभाव से एक देव भविष्यदत्त को घर पहुँचा देता है। भविष्यदत्त ने घर आकर पूरा भेद बतलाया और वहाँ के राजा से न्याय की मांग की। बंधुदत्त दोषी ठहरता है अतः उसे दंड मिलता है और भविष्यदत्त को उसकी पत्नी वापिस मिल जाती है । इसके साथ ही राजा भविष्यदत्त को अपना उत्तराधिकारी बनाकर अपनी पुत्री सुमित्रा का विवाह करने को कहता है। इतने में गजपुर के राजा के पास पोदनपुर के राजा का एक संदेश आता है। संदेश में वह सुमित्रा की मांग करता है। राजा के इस अपमान से युद्ध आवश्यक हो जाता है। युद्ध में भविष्यदत्त प्रमुख भाग लेता है और विजयी होकर सुमित्रा से परिणय करता है। . भविष्यदत्त गजपुर का युवराज बनता है और सुखपूर्वक रहने लगता है। तत्पश्चात् भविष्यदत्त की प्रथम पत्नी को अपनी मातृभूमि जाने की
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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