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अपभ्रंश कथा : परिभाषा, व्याप्ति और वर्गीकरण : २३१
में कवि जिन-स्तुति एवं सज्जन-दुर्जनप्रशंसा करता है। तत्पश्चात् मूल विषय आरम्भ होता है। कवि ने अपने काव्य को दो भागों में विभक्त किया है-'विहि खंडहिं वावीसहि संधिहि परिचितिय नियहेउ निबंधिहि । परन्तु हर्मन जेकोबी ने कथा को तीन भागों में विभक्त किया है। प्रथम भाग में धनपाल नामक एक व्यापारी के पुत्र भविष्यदत्त के भाग्य का वर्णन है। प्रारम्भ में भविष्यदत्त को उसका सौतेला भाई धोखा देता है अतः भविष्यदत्त को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । बाद में वह अतुल धनराशि पाता है। द्वितीय भाग में कुरुराज और तक्षशिलाराज में युद्ध वर्णित है। भविष्यदत्त को इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसको विजय के फलस्वरूप कुरुराज्य का अर्द्धभाग प्राप्त होता है। तृतीय भाग में भविष्यदत्त एवं उसके साथियों के पूर्वजन्म तथा उत्तरजन्मों का विवरण है। कथा संक्षेप में इस प्रकार है :
गजपुर नामक समृद्ध नगर में एक व्यापारी था जिसका नाम धनपाल था। उसकी कमलश्री नामक पत्नी थी जो मन को हरनेवाली और अरविन्द के समान मुखवाली थी। किसी पुत्र के न होने से दोनों चिन्तित थे। कमलश्री एक बार मुनि श्रेष्ठ के पास गई और पुत्र न होने की बातें कहीं। मुनि ने पूत्र होने का आशीर्वाद दिया। समयानुसार मुनि का आशीर्वाद फलित हुआ। विलक्षण प्रतिभा के लक्षणों से युक्त पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम भविष्यदत्त रखा गया । धनपाल सरूपा नामक सुन्दरी से अपना दूसरा विवाह कर लेता है और कमलश्री तथा भविष्यदत्त को भूलने लगता है। सरूपा से बंधुदत्त नामक पुत्र उत्पन्न होता
है। बंधुदत्त का लालन-पालन होता है और वह बड़ा हो जाता है । . बंधुदत्त व्यापार करने के लिए देशान्तर की तैयारी कर लेता है। वह
अन्य ५०० व्यापारियों के साथ कंचनपुर को यात्रा करता है । बंधुदत्त को देशान्तर जाते हुए देखकर भविष्यदत्त ने उसके साथ जाने का कमलश्री से आग्रह किया। कमलश्री के बहुत मना करने पर भी भविष्यदत्त ने बंधुदत्त का विश्वास किया और उसके साथ हो लिया। यात्रा पर चलने के पूर्व कमलश्रो ने अपने पुत्र को सदाचार का उपदेश दिया और सरूपा ने अपने पुत्र बंधुदत्त से कहा कि वह भविष्यदत्त को समुद्र
१. भविसयत्तकहा, पृ० १४९.