________________
अपभ्रंश कथा: परिभाषा, व्याप्ति और वर्गीकरण : २२९
पउमसिरोचरिउ
कवि धाहिल का लिखा हुआ पउमसिरोचरिउ चार संधियों में समाप्त एक प्रेमकथा है । जैसा कि जैनों के अन्य काव्यों में भी धार्मिक उद्देश्य अधिक निहित रहता है, वैसा हो इसमें भी है । धाहिल ने स्वयं ही अपने को दिव्यदृष्टि कहा है- 'धाहिल दिव्वदिट्ठि कवि जंपइ' । इनका समय वि० ८वीं श० के बाद और बारहवीं शताब्दी के पूर्व माना गया है । कथा संक्षेप में इस प्रकार है :
भगवान् चन्द्रप्रभ एवं सरस्वती की स्तुति के बाद कवि कथा आरम्भ करता है । भरत क्षेत्र के मध्यदेश में बसन्तपुर नामक एक नगर था। वहां के राजा का नाम जितशत्रु था और लीलावती नामक उसकी रानो थी । उसी नगर में अतुल धनराशि का स्वामी धनसेन नामक एक श्रेष्ठी रहता था । धनश्री नामक उसकी दिव्यस्वरूपा एक कन्या और धनदत्त तथा धनावह नामक दो पुत्र थे । कन्या की शादी तो हो गई परन्तु दुर्भाग्य से वह विधवा हो गई । अपना जीवन बिताने के लिए वह अपने भाइयों के घर रहने लगी और भजन-पूजन करने के साथ घर की भी देखभाल करती थी ।
एक दिन नगर में धर्मघोष नामक एक मुनिवर आये। उनके उपदेशों का धनश्री पर बहुत प्रभाव हुआ । धनश्री नित्य पूजन- दानादि कर्म
●
करने लगी। चूंकि धन भाइयों का था अतः भाभियों को बुरा लगा और कभी-कभी धनश्री पर व्यंग्य करती थीं । धनश्री स्त्री थी अतः उसके मन में दूषित भाव आ गए और उसने भाइयों को भाभियों के विरुद्ध कर दिया। बाद में उसने उन दोनों भाई- भाभियों के भेद-भाव को मिटा दिया। इस प्रकार धनश्री ने अच्छे धर्मध्यान पूर्वक मरणोपरान्त देवलोकं पाया ।
धनदत्त ने दूसरे जन्म में अयोध्या के राजा अशोकदत्त के यहाँ पुत्ररूप में जन्म लिया । इसके भाई धनावह ने भी इसी राजा के यहां जन्म लिया। यहां धनदत्त का नाम समुद्रदत्त और धनावह का वृषभदत्त
1
एच० भायाणी तथा एम० मोदी द्वारा सम्पादित, भा०वि० भ० बम्बई, वि० सं० २००५ में प्रकाशित.