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२२८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक का निश्चय किया और वे गोदावरी नदी के किनारे भवानी की पूजा करने लगीं।
कथा की नायिका लीलावती सिंहलदेश की राजकुमारी थी। इसके पिता सिंहलराज शिलामेघ थे और माता शारदश्री वसन्तश्री की बहन थी। लीलावती ने राजा सातवाहन का चित्र देखा और वह मोहित हो .. गई। राजा सातवाहन को वह स्वप्न में देखती। उसने माता-पिता की आज्ञा ली और अपने प्रिय की खोज में निकल पड़ी। मार्ग में गोदावरी नदी पड़ी वहाँ उसका दल ठहर गया। वहीं उसकी मौसी वसन्तश्री की। पुत्री महानुमति और उसकी सखी कुवलयावलि से भेंट हो गई। दो से तीन विरहिणियाँ हो गई और एक साथ रहने लगीं।
राजा सातवाहन को साम्राज्य-विस्तार की इच्छा हुई। अतः वह सेना लेकर सिंहल को ओर चला। राजा के दूत ने सातवाहन को मंत्रणा दी कि सिंहलराज से शत्रुता नहीं बढ़ानी चाहिए। अतः सातवाहन ने विजयानन्द सेनापति को दूत बनाकर सिंहलराज के पास भेजा। वह रामेश्वर के मार्ग से सिंहल रवाना हुआ। विजयानन्द जिस नौका से जा रहा था वह टूट गई अतः उसे गोदावरी के तट पर रुक जाना पड़ा। यहाँ पर उसे नग्न पाशुपत के दर्शन हए। उसे पता लगा कि सिंहलराज की पुत्री अपनी सखियों के साथ यहां रहती है। विजयानन्द लौट आया और सातवाहन से आकर पूरा वृत्तान्त कहा। सातवाहन ने उससे विवाह करने की इच्छा व्यक्त की। सातवाहन सेनासहित उपस्थित हआ। परन्तु लीलावती ने कहा कि जब तक महानुमति का प्रिय नहीं मिलेगा तब तक वह विवाह नहीं करेगी। राजा पाताललोक गया और माधवानिल को छुड़ा लाया। राजा ने अपनी राजधानी लौटकर भीषणानन राक्षस पर आक्रमण किया तो चोट खाते ही वह राजकुमार बन गया।
संयोगात् यक्षराज नलकूबर, विद्याधर हंस और शिलामेघ एक ही स्थान पर एकत्रित होते हैं। नलकूबर अपनी पुत्री महानुमति का उसके प्रिय सिद्धकुमार माधवानिल से, विद्याधर हंस अपनी कन्या कुवलयावलि का चित्रांगद से और सिंहलनरेश अपनी राजकुमारी लोलावतो का राजा सातवाहन के साथ विवाह कर देते हैं।