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________________ अपभ्रंश कथा: परिभाषा, व्याप्ति और वर्गीकरण : २२७ का परिचय दिया है। इनके पितामह बहुलादित्य प्रकाण्ड पण्डित थे । अतः पाण्डित्य इन्हें विरासत में मिला। इस कथा को कवि ने 'दिव्यमानुषी' कहा ।' अपनी पत्नी की विनती पर कवि ने 'मरहट्ट - देसिभासा' में इसकी रचना की । मूलतः यह रचना अपभ्रंश भाषा की नहीं है। तथापि एक महत्त्वपूर्ण प्रेमकथा होने के कारण यहाँ इसका उल्लेख करना आवश्यक समझा गया है। दूसरी प्रमुख बात यह है कि इसे संस्कृत की कादम्बरी के टक्कर की रचना घोषित किया गया है। जो हो, प्राकृत अपभ्रंश की दूरी में इसे एक कड़ी हो समझना चाहिए | इसका कथा-सारांश इस प्रकार है : मंगलाचरणादि के बाद मूल विषय प्रारम्भ होता है । प्रतिष्ठान नामक एक रमणीक नगर था । वहाँ का राजा सातवाहन था । कथा का नायक राजा सातवाहन ही है। राजा विपुलाशय की अप्सरा रम्भा से कुवलयावलि नाम की पुत्री थी । गन्धर्व कुमार चित्रांगद से उसका प्रेम हो गया और उसने गन्धर्व विवाह कर लिया। जब राजा विपुलाशय को इस बात का पता लगा तो उसने चित्रांगद को राक्षस होने का शाप दे दिया । वह भीषणानन नामक राक्षस बन गया । कुवलयावलि बहुत : दुःखित होती है और आत्महत्या करने लगती है । परन्तु उसकी मां रम्भा उसे रोक देती है । रम्भा ने उसे सान्त्वना दी तथा यक्षराज नलकूबर के पास छोड़ दिया। इस यक्षराज की पत्नी एक विद्याधरी वसन्त थी जिससे महानुमति नामक पुत्री हुई । महानुमति का कुवलयावल से स्नेह बढ़ता गया और दानों अच्छी सखियाँ बन गईं। एक बार दोनों सखियाँ विमान द्वारा मलयगिरि पर गईं । वहाँ सिद्धकुमारियों के साथ झूला झूलते हुए कुवलयावल की आँखें सिद्धकुमार माधवानिल से . मिल गईं और वह प्रेमाविद्ध हो गई । वहाँ से वह घर वापिस आई तो उसकी व्याकुलता बढ़ने लगी । कुवलयावलि सखी की दशा देखकर सिद्धकुमार का पता लगाने मलय पर्वत पर गई । वहाँ पहुँचने पर पता चला कि माधवानिल को उसका कोई शत्रु पाताललोक में ले गया है । कुवलयावलि अपनी सखी के पास लौट आती है और उसे धैर्य बंधाती है। दोनों सखियों ने अपनी इष्टसिद्धि के लिए भवानी-पूजन १. लीलावईकहा, पृ० ११.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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