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अपभ्रंश कथा : परिभाषा, व्याप्ति और वर्गीकरण : २२५ बृहत्कथेति । तथा च
लम्भाङ्कितामृतार्था पिशाचभाषामयी महाविषया। नरवाहनदत्तादेश्चरितमिव बृहत्कथा भवति ॥ .
( पृ० ४६५ ) कौतूहल कवि ने लीलावईकहा को दिव्यमानुषी कथा कहा है । दिव्यमानुषी कथा पाठकों को आकर्षित करती है। अपनी कथा के सन्दर्भ में कवि कहता है कि उसकी पत्नी ने उससे कहा कि वह मुग्ध युवतियों के लिए प्राकृत भाषा में, जिसमें देशी शब्द. भी हों, एक दिव्यमानुषी कथा कहे :
एमेयमुद्ध-जुयई-मणोहरं पाययाए भासाए । पविरल-देसि-सुलक्खं कहसु कहं दिव्व-माणुसियं ॥ तं तह सोऊण पुणो भणियं उब्बिब-बाल-हरिणच्छि ।
जइ एवं ता सुव्वउ सुसंधि-बंधं कहा-वत्थु ॥' और कवि कौतूहल त्रस्त बालहरिणो के समान नेत्रवाली अपनी पत्नी के आग्रह को स्वीकार कर दिव्यमानुषी लीलावतीकथा की रचना कर देते हैं। उन्होंने आगे संस्कृत, प्राकृत और मिश्र भाषा में रची जाने . वाली कथाओं का भी संदर्भ दिया है अर्थात् इसे उनके अनुसार भाषा . के आधार पर कथाओं का भेद माना जा सकता है : .. . अण्णं सक्कय-पायय-संकिण्ण-विहा सुवण्ण-रइयाओ।
सुव्वंति महा-कह-पुंगवेहि विविहाउ सुकहाओ॥ अर्थात् संस्कृत, प्राकृत एवं मिश्र भाषा में सुन्दर शब्दावली में रचित . महाकवियों की विविध कथाएँ सुनी जाती हैं। .. मुख्यतः प्राकृत-अपभ्रंश का अधिकतम भाग जैन साहित्यान्तर्गत है। • आगे जिन अपभ्रंश कथाकाव्यों के विषय में विशद विचार करेंगे वे भी उक्त साहित्य में से ही होंगे। डा० ए० एन० उपाध्ये ने जैन कथा-साहित्य को पाँच भागों में विभक्त किया है :
१. लीलावईकहा, पृ० ११. २. वही, पृ० १०. ३. बृहत्कथाकोश की प्रस्तावना, पृ० ३५.