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२२२ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
___ आचार्य हेमचन्द्र ने काव्यानुशासन में कथाओं के १. कथा, २. उपाख्यान, ३. आख्यान, ४. निदर्शन, ५. प्रवल्हिका, ६. मन्थल्लिका, ७. मणिकुल्या, ८. परिकथा, ९. खंडकथा, १०. सकलकथा, ११. उपकथा, १२. बृहत्कथा के भेद से १२ भेद गिनाए हैं। उनका कथन है कि धीर-प्रशान्त नायक द्वारा समस्त भाषाओं में गद्य अथवा पद्य में अपना वृत्तान्त लिखा जाना कथा है। धीर-प्रशान्त नायक को अन्य कवि द्वारा कोई गद्यमय रचना जैसे कादम्बरी, कोई पद्यमय रचना जैसे लीलावती कथा है और समस्त भाषाओं में कोई संस्कृत, कोई प्राकृत, कोई मागधी, शौरसेनी, पैशाची अथवा कोई अपभ्रंश भाषा में निबद्ध वृत्तांत कथा है।
किसी प्रबन्ध में प्रबोधनार्थ उदाहरणस्वरूप जो कथा आये वह उपाख्यान है, जैसे नलोपाख्यान | आख्यान अभिनय, पठन, गायन के रूप में ग्रन्थिक द्वारा कहा गया होता है-जैसे गोविन्दाख्यान । जहाँ अनेक प्रकार की चेष्टाओं द्वारा कार्य-अकार्य, उचित-अनुचित का निश्चय किया जाय और जिसके पात्र धूर्त, विट, कुट्टिनो, मयूर और मार्जारादि हों, वहाँ निदर्शन होता है, जैसे—पंचतन्त्र । जहाँ दो विवादों में एक की प्रधानता दिखायी जाय और जो अर्ध-प्राकृत में रची गई हो वह प्रवल्हिका है, जैसे-चेटक । प्रेत महाराष्ट्रो भाषा में लिखी गई क्षुद्रकथा को मन्थल्लिका कहते हैं, जैसे—अनंगवती। जिसमें पुरोहित, अमात्य, तापसी आदि का प्रारब्धनिर्वाह में वर्णन हो वह भो मन्थल्लिका है । जिसमें वस्तु का पूर्व में प्रकाशन न होकर बाद में हो, वह मणिकुल्या है, जैसे-मत्स्यहसित। धर्म, अर्थ, कामादि पुरुषार्थों में से किसी एक पुरुषार्थ को उद्देश्य कर लिखी गई कथा जो अनेक वृत्तान्त, वर्णन प्रधान हो वह परिकथा कहलाती है, जैसे-शूद्रक । जिसका मुख्य इतिवृत्त रचना के मध्य या अन्त के समीप वणित हो, वह खण्डकथा है, जैसे-इन्दुमती। ऐसा इतिवृत्त जिसके अन्त में समस्त फलों की सिद्धि हो जाय वह सकलकथा है, जैसे-समरादित्य । प्रसिद्ध कथा के अन्तर्गत किसी एक पात्र के आश्रय से उपनिबंधित कथा उपकथा होती है। लम्भ चिह्न से अंकित, अद्भुत अर्थ वाली कथा बृहत्कथा कहलाती है, जैसे-नरवाहनदत्तचरितादि :
धोरशान्तनायका गद्येन पद्येन वा सर्वभाषा कथा । अ०८, स०८॥
आख्यायिकावन्न स्वचरितव्यावर्णकोऽपि तु धीरशान्तो नायकः, तस्य तु वृत्तमन्येन कविना वा यत्र वर्णोते, या च काचिद् गद्यमयी यथा