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अपभ्रंश कथा: परिभाषा, व्याप्ति और वर्गीकरण : २१९
धार्मिक कथान्तर्गत निर्वेदिनी कथा पापाचरण से छुटकारा दिलाने के लिए कही जाती है । इसके चार भेद हैं । प्रथम प्रकार की निर्वेदिनी कथाएं वे होती हैं जो इस लोक में किए गए दुराचरणों का फल इसी लोक में पाने का कथन करके व्यक्ति में वैराग्योत्पादन करती हैं । इस जन्म के किये गये कार्यकलापों का फल जन्मजन्मान्तरों तक भोगना पड़ता है, इसका कथन करके व्यक्ति में निर्वेद उत्पन्न करनेवाली कथा दूसरा प्रकार है । इसी प्रकार परलोकसम्बन्धी क्रियाकलापों का सरस वर्णन करने वाली निर्वेदिनो कथा तीसरा प्रकार है । चतुर्थ प्रकार सहित निर्वेदिनी कथाएं सरस ढंग से व्यक्ति को वैराग्योन्मुख करने में सहायक होती हैं। इस कथा का दशवैकालिक में निम्नलिखित स्वरूप है :
पावाणं कम्माणं असुभविवागो कहिज्जए जत्थ । इयं परत्थय लोए कहा उ णिव्वेयणी नाम ॥ थोपि पमायकयं कम्मं साहिज्जई जहि नियमा । परासुहपरिणामं कहाइ निव्वेयणीइ रसो ॥ १ दशवैकालिक में कथा के जो चार प्रकार बताए हैं उनमें चौथी मिश्रित कथा होती है । मिश्रित कथा में धर्म, अर्थ, काम इन तीनों प्रकार की कथाओं का मिश्रित रूप होता है । जिस कथा में किसी एक पुरुषार्थ की प्रधानता न होकर तीनों ही पुरुषार्थों के वर्णन में समानता रहे वह मिश्रकथा कहलाती है :
सा पुनः 'मिश्रा' मिश्रानाम संकीर्ण पुरुषार्थाभिधानात् । '
हरिभद्रसूरि ने 'समराइच्चकहा' में उक्त चार प्रकार की ही कथाओं का उल्लेख किया है - एत्थ सामन्नओ चत्तारि कहाओ हवन्ति । तं जहा । अत्थकहा, कामकहा, धन्मकहा, संकिण्णकहा य । इन कथाओं के अलग. अलग लक्षण भी दिये गये हैं । अर्थकथा और कामकथा के लक्षण लगभग दशवैकालिक ग्रन्थ के लक्षणों के समान ही हैं। हरिभद्रसूरि के
१. दशवैकालिक, पृ० २१९.
२. दशवैकालिक सूत्र : हरिभद्रवृत्ति, पृ० २२८.
३. समराइच्चकहा, संपा० एम० सी० मोदी, भाग २, पृ० २. ४. तत्थ अत्थकहा नाम - जा अत्थोवायाणपडिबद्धा असिमसिकसिवाणिज्जसिप्प संगया विचित्तधाऊवायाइपमुहमहोवायसंपउत्ता सामभेय उवप्पयाणदण्डाइत्थविरइया, सा अत्थकह त्ति भणइ । जा उण कामोवायाणविसया वित्तवपुव्वयकलादक्खिण परिगया अणुरायपुलइयपडिवत्तिजोयसारा दूईवावारमियभावाणुवत्तणाइपयत्य संगया, सा काम कह त्ति भणइ । - वही, पृ०२ - ३.