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अपभ्रंश कथा : परिभाषा, व्याप्ति और वर्गीकरण : २१७ विज्जासिप्पमुवाओ अणिवेओ संचओ य दक्खत्तं ।
सामं दंडो भेओ उवप्पयाणं च अत्थकहा ॥ १८९ ॥' अर्थात् विद्या, शिल्प, उपाय, साम, दंड और भेद का जिस कथा में वर्णन हो वह अर्थकथा है। मूलतः अर्थकथाओं में अर्थसम्बन्धी अथवा अर्थोपार्जनसम्बन्धी बातों की प्रधानता रहती है। अतएव उसे अर्थकथा संज्ञा से अभिहित किया जाता है।
कामकथा का लक्षण इस प्रकार है-रूप, अवस्था, वेश, दाक्षिण्य, शिक्षा आदि विषयों की एवं कला-शिक्षा की दृष्टि, श्रुति, अनुभूति और संस्तुति कामकथा है। .
रूवं वओ य वेसो दक्खत्तं सिक्खियं च बिसएसुं।
दिळं सुयमणुभूयं च संथवो चेव कामकहा ॥ १९२॥ दशवैकालिक में धर्मकथा आक्षेपिणी, विक्षेपिणी, संवेगिनी और निर्वेदिनी चार प्रकार की कही गई है। आक्षेपिणी कथा में आचार, व्यवहार, प्रज्ञप्ति और दृष्टिवाद ये चार बातें मुख्यतया होती हैं :
धम्मकहां बोद्धव्वा चउन्विहा धोरपुरिसपन्नता। ___अक्खेवणि विक्खेवणि संवेगे चेव निव्वेए ॥
आयारे ववहारे पन्नत्ती चेव दिट्ठीवाए य।
एसा चउन्विहा खलु कहा उ अक्खेवणी होइ ॥१९४-१९५॥ विक्षेपिणी कथा चार प्रकार की होती है-अपने शास्त्र के कथनो. परान्त परशास्त्र का कथन करना, परशास्त्र के कथनोपरान्त अपने शास्त्र
का कथन, मिथ्यात्व का वर्णन करके सम्यक्त्व का कथन, और सम्यक्त्व .का विवेचन करके मिथ्यात्व का वर्णन करना। - विक्खेवणी सा चउन्विहा पण्णत्ता, तंजहा-ससमयं कहेत्ता परसमयं कहेइ, परसमयं कहेत्ता ससमयं कहेइ, मिच्छावादं कहेत्ता सम्मावादं कहेइ, सम्मावादं कहेत्ता मिच्छावायं कहेइ ॥
१. वही.
२. वही, पृ० २१८. ३. वही, पृ० २१६. ४. दशवकालिक-सूत्र : हरिभद्रवृत्ति, म०म० प्रिंटिंग वर्क्स, पृ० २२१.