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________________ २१६ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक जायेंगे तब तो महाकवि तुलसीदासकृत रामचरितमानस भी साम्प्रदायिक श्रेणी में रखा जायेगा। जबकि तुलसी बाबा स्वयं उसे 'कथा' कहते हैं। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी धार्मिक प्रेरणा को काव्यत्व में बाधक नहीं मानते । उनके मत से 'इधर कुछ ऐसी मनोभावना दिखाई पड़ने लगी है कि धार्मिक रचनाएं साहित्य में विवेच्य नहीं हैं। कभी-कभी शुक्ल जी के मत को भी इस मत के समर्थन में उद्धृत किया जाता है। मुझे यह बात उचित नहीं मालूम होती। धार्मिक प्रेरणा या आध्यात्मिक उपदेश होना काव्यत्व का बाधक नहीं समझा जाना चाहिये।'' . ___इन तथ्यों के आधार पर कथाकाव्य की व्यापकता की पुष्टि होती है । . साथ ही यह भी सिद्ध होता है कि कथाकाव्य के अन्तर्गत रास, चरित, विलास, पुराण के अतिरिक्त धर्मकथाओं तथा कथात्मक काव्यों का भी समावेश किया जाना चाहिये। अपभ्रंश कथा-साहित्य में शलाका पुरुषों की कथा के अतिरिक्त धार्मिक व्रत, अनुष्ठान और विधानादि सम्बन्धी रचनाएँ भी 'कथा' संज्ञक उपलब्ध हैं। उदाहरणस्वरूप नयनंदिकृत सकलविधिविधानकहा (वि० सं० ११०० ), रइधूकृतं पुण्णासवकहाकोसो, बालचन्द्रकृत सुगंधदहमीकहा एवं णिद्दहसत्तमीकहा, यशःकीर्ति की जिणरत्तिविहाणकहा व रविवयकहा का नामोल्लेख किया जा सकता है। इस प्रकार अपभ्रंश कथा-साहित्य को व्रत-कथाकाव्य, पुराण, चरित आदि कथाकाव्यों से भरपूर पाते हैं। ___ अपभ्रंश एवं प्राकृत में कथा के लक्षण, भेद एवं उपभेदों पर यत्र-तत्र कथाग्रन्थों, कोषों तथा अन्य धार्मिक ग्रन्थों में विचार किया गया है। प्राकृत ग्रन्थ दशवैकालिक में कथाएँ चार प्रकार की बताई गई हैं-अर्थकथा, कामकथा, धर्मकथा और मिश्रितकथा । अत्थकहा कामकहा धम्मकहा चेव मीसिया य कहा। एत्तो एक्केक्कावि य णेगविहा होइ नायव्वा ॥ १८८॥२ इन कथाओं के भी उपभेद होते हैं । सबका उल्लेख करना यहाँ प्रासंगिक नहीं है। अर्थकथा का लक्षण इस प्रकार है : १. हिन्दी साहित्य का आदिकाल, पृ० ११. २: दशवैकालिक, पृ० २१२.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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