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________________ अपभ्रंश कथा: परिभाषा, व्याप्ति और वर्गीकरण : २०९ जिस प्रकार हिन्दुओं में पुराण और उपपुराण हैं उसी प्रकार जैनों में भी पुराण एवं महापुराण माने गये हैं । जिस पुराण में एक शलाका पुरुष का चरित वर्णित होता है वह पुराण है और जिसमें त्रेसठ शलाका पुरुषों का चरित वर्णित होता है वह महापुराण है । पुराण का लक्षण देते हुए आचार्य जिनसेन ( ई० सन् ८वीं शती) लिखते हैं कि जो पुराण का अर्थ है वही धर्म है, यह पुराण पांच प्रकार का है— क्षेत्र, काल, तीर्थ, सत्पुरुष और सत्पुरुष का चरित्र : स च धर्मः पुराणार्थः पुराणं पञ्चधा विदुः । १ क्षेत्र कालश्च तीर्थञ्च सत्पुंसस्तद्विचेष्टितम् ॥ आचार्य ने क्षेत्र, काल और तीर्थादि को अलग-अलग स्पष्ट किया है । आकाश, मर्त्य और पाताल लोक के विन्यास को क्षेत्र, भूत, भविष्य और वर्तमान तीन काल के विस्तार को काल; मोक्षप्राप्ति के उपाय को तीर्थ कहते हैं और तीर्थ का सेवन करने वाले शलाका पुरुष कहलाते हैं : क्षेत्रं त्रैलोक्यविन्यासः कालस्त्रैकाल्यविस्तरः । मुक्त्युपायो भवेत्तीर्थं पुरुषास्तन्निषेविणः ॥ आदिपुराण में पुराण के वर्ण्य पर विचार करते हुए लोक, देश, नगर, राज्य, तीर्थ, दान-तप, गति और फल इन आठ का पुराणों में वर्णन आवश्यक बतलाया गया है : ર लोको देशः पुरं राज्यं तीर्थं दानतपोऽन्वयम् । पुराणेष्वष्टधाख्येयं फलमित्यपि ॥ ३ ॥ गतयः लोक का नाम कहना, उसकी व्युत्पत्ति बतलाना, प्रत्येक दिशा तथा उसके अन्तरालों की लम्बाई, चौड़ाई आदि बतलाना, इनके सिवाय और अनेक बातों का विस्तार के साथ वर्णन करना लोकाख्यान कहलाता है। लोक के किसी एक भाग में पहाड़, द्वीप तथा समुद्र आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन करने को जानकार सम्यग्ज्ञानी देशाख्यान कहते हैं । भारतवर्ष आदि क्षेत्रों में राजधानी का वर्णन करना पुराण जानने वाले आचार्यों . के मत से पुराख्यान कहलाता है । उस देश का यह भाग अमुक राजा के १. आदिपुराण, २.३८. २. वही, २.३९. ३. वही, ४.३. १४
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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