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________________ अपभ्रंश कथा : परिभाषा, व्याप्ति और वर्गीकरण : २०७ पुराणों के प्रयोजन के सम्बन्ध में कहा गया है-'लोक संग्राहक कृष्ण द्वैपायन व्यास ने भारतीय युद्ध के बाद की देश की एवं लोगों की, विशेषकर स्त्रियों, शूद्रों तथा नाम मात्र से द्विजों की, स्थिति का आलोचन किया, और चारों वेदों का अर्थ, जो अत्यन्त गूढ़ है, सभी लोग सरलता से समझें जिससे उनका कल्याण हो, इस हेतु इतिहास और पुराण रूपी सीधा मार्ग निर्माण किया। इन पुराणों में विधि और निषेध रूप में धर्मों का विवेचन किया गया। आचार्य जिनसेनकृत जैन आदिपुराण में पुरातन आख्यानों को पुराण कहा गया है-'पुरातनं पुराणं स्यात् । पुराणों का अर्थ ही है पुरानी कहानियाँ अथवा पुराने इतिहास के ग्रन्थ । अनेक पुराणों में पुराण की जो परिभाषाएँ उपलब्ध हैं उनमें पुरातन कहानियों से युक्त उन्हें अवश्य बतलाया गया है। विष्णुपुराण में पुराण उसे कहा गया है जो इन पाँच बातों से युक्त हो : सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशमन्वन्तराणि च। ___ सर्वेष्वेतेषु कथ्यन्ते वंशानुचरितं च यत् ॥ आगे पुराण के वर्ण्य विषय के सम्बन्ध में भी वहीं उल्लेख किया गया है कि पुराण में आख्यान, उपाख्यान, गाथा और कल्पशुद्धि के अन्तर्गत वर्णन होने चाहिए : . ... आख्यानैश्चाप्युपाख्यानैर्गाथाभिः कल्पशुद्धिभिः। - 'पुराणसंहितां चक्रे पुराणार्थविशारदः ॥ • . महाभारत में पुराणों के वर्ण्य विषय के सन्दर्भ में कहा गया है कि •उनमें दिव्य कथाओं और श्रेष्ठ चिन्तकों का चरित्र वर्णित होना चाहिए : पुराणे हि कथा दिव्या आदिवंशाश्च धीमताम् । ..... कथ्यन्ते ये पुरास्माभिः श्रुतपूर्वाः पितुस्तव ॥ १. हिन्दी विश्वकोश, खंड ७, पृ० २४९. २. वही, पृ० २५०. . ३. आदिपुराण, १.२१. ४. रामप्रताप त्रिपाठी, पुराणों की अमर कहानियां, भाग १ का निवेदन. ५. विष्णुपुराण ( गीताप्रेस, गोरखपुर ), ३.६.२५. ६. वही, ३.६.१५. ७. महाभारत, १.५.२.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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