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.. २०६ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
नगर को वापिस हुए। उधर भी सब शांत हो चुका था। लीलावती रानी ने अपने किये का प्रायश्चित्त किया। सभी सुखपूर्वक रहने लगे।
यही उक्त रास की कथा है। मैं नहीं समझता कि इसमें किसी कथाकाव्य के गण नहीं पाये जाते । स्वप्न-दर्शन, चित्रदर्शन, जोगीवेष, सौतेली मां का प्रणय-निवेदन, सर्पदंश आदि कथानक-रूढ़ियों तक का इसमें पाया जाना इस बात का प्रमाण है। रास संज्ञक सभी रचनाओं को कथाकाव्यों में स्वीकार करने का मेरा आग्रह कदापि नहीं है। डा० दशरथ ओझा ने रास ग्रन्थों की संख्या के विषय में लिखा है कि 'उपलब्ध रास ग्रन्थों को संख्या न्यूनाधिक एक सहस्र तक पहुंच जाती है ।'' ऊपर हंसराज-वच्छंराज रास संज्ञक रचना की कथा के आधार पर एवं अहहमाण के अपभ्रंश भाषा में रचित संदेशरासक आदि रचनाओं के आधार पर हम रासकों को कथाकाव्यों के अन्तर्गत समाविष्ट करना अनुचित नहीं. समझते। ___ इसी प्रकार चरित एवं रास का पर्याय विलास भी होता है अथवा इसे पर्याय न मानें तो समानार्थक शब्द मान सकते हैं। पण्डित गौरीशंकर हीराचन्द जी ओझा का कथन है कि 'मैं रासा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के रास शब्द से होना मानता हूँ। रास शब्द का अर्थ विलास भी होता है ( शब्दकल्पद्रुम, चतुर्थ खण्ड, पृ० १५९ ) और विलास शब्द चरित, इतिहास आदि के अर्थ में प्रचलित है। जयविलास, भीमविलास आदि ऐतिहासिक ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं और प्राचीन गुजराती भाषा में कई राजाओं के इतिवृत्त रास नाम से प्रसिद्ध हैं ( कुमारपालरास, श्रीपालरास आदि )। अतः विलास भी चरितादि काव्यों की श्रेणी में आ जाता है। ____ पुराण-साहित्य कथा-साहित्य के अन्तर्गत आता है अथवा नहीं, यह प्रश्न विचारणीय है। वास्तव में परंपरया स्मृतियों से प्राप्त सामग्री का वर्णन करना ही पुराण का कार्य है और वही उसका लक्षण है :
पुरा परंपरां वक्ति पुराणं तेन वै स्मृतम् ।
१. डा० दशरथ ओझा, हिन्दी नाटक : उद्भव और विकास, पृ० २१. २. काशी नागरी प्रचारिणी सभा, हस्तलेख संख्या २९ की पुष्पिका से.. ३. वायुपुराण, १.२.५३.