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________________ अपभ्रंश कथा : परिभाषा, व्याप्ति और वर्गीकरण : १९७ महाकाव्य के शास्त्रीय और गुरुगम्भीर काव्यरूप की जगह सरल और रोमांसिक कथाकाव्य का बहुत प्रचार हुआ। सर्वप्रथम फ्रांस में १२वीं शती के उत्तरार्द्ध तथा १३वीं शती के पूर्वार्द्ध में किंग आर्थर और उसके सामंतों के वीरतापूर्ण कार्यों तथा प्रेम की रोमांसिक कथाओं को पद्यबद्ध कथाकाव्य ( ले ) का रूप दिया गया (एनसाइक्लोपीडिया आफ लिटरेचर-शिपले, पृ०२९२-९३ )। इंग्लैंड में भी १३वीं शताब्दी में आर्थरगाथा-चक्र से सम्बन्धित अनेकानेक पद्यबद्ध कथाकाव्य लिखे गये । इन सभी कथाकाव्यों में काल्पनिकता, रोमांसिकता, उद्दाम साहस और सामन्ती प्रेम भावना की अधिकता दिखाई पड़ती है। कथाकाव्य के विकास का यह क्रम बहुत कुछ इसी रूप में भारतवर्ष में दिखलाई पड़ता है। रामायण-महाभारत के अनुकरण पर, किन्तु अलंकृत शैली में, संस्कृत के महाकाव्यों को परम्परा विकसित हुई और उन्हीं दोनों महाकाव्यों के रोमांसिक तत्त्वों और साहसिक कार्यों का अनुकरण करके 'बृहत्कथा' के सम्बन्ध में तो अधिकांश विद्वान् एकमत हैं कि उसका मूलरूप भी पद्यबद्ध रहा होगा । उसके संस्कृत रूपान्तर तो पद्यबद्ध हैं ही "आदि । ___ कथाकाव्यों के विकास के मूल में हमें कथा के दो रूपों का दर्शन . होता है। उनमें पहला कथा का मौखिक रूप है और दूसरा लिखित रूप। वास्तव में जब लेखन प्रणाली का श्रीगणेश नहीं हुआ था तब कथा का रूप मौखिक ही था। वैसे आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में मौखिक कथाओं का प्रचलन है। श्री सत्यव्रत अवस्थी मौखिक कथा-साहित्य को भारतीय कथा का आदिम रूप मानते हैं। अवस्थी जी ने मौखिक कथा-साहित्य को दो भागों में विभक्त किया है-(अ) लोक-काव्य-कथा या लोक-गाथा, पद्यरूप; (ब) लोक-कथा, गद्य-रूप। लोकगाथा या लोककाव्य कथा से तात्पर्य ऐसी कथा से है जो काव्यरूप में लोक में प्रचलित हो। लोक-कथा का तात्पर्य उस कथा से है जो लोक में गद्यरूप में प्रचलित रही हो। लिखित कथाओं के भी दो रूप गिनाए गए हैं : १. पौराणिक कथाएँ, २. साहित्यिक कथाएँ। ... १. संपा०-डा० धीरेन्द्र वर्मा आदि, हिन्दी साहित्य कोश, पृ० १८२-८३. २. सत्यव्रत अवस्थी, लोकसाहित्य की भूमिका, पृ० ५६. ३. वही, पृ० ४५२.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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