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________________ १९८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक भारतीय आचार्यों-लक्षणकारों के कथा-आख्यायिकाओं के लक्षणों के आधार पर डा० शम्भूनाथ सिंह ने एक रूपरेखा प्रस्तुत की है, जो इस प्रकार है : १. कथा-आख्यायिकाओं में रोमांचक तत्त्वों और साहसिक कार्यों जैसे युद्ध, बलपूर्वक विवाह, कन्याहरण, भयंकर यात्रा, मार्ग की दुरूह कठिनाइयाँ, देव-असुर, गंधर्व, यक्ष आदि के अलौकिक कार्य आदि का बहुत अधिक विस्तार होता है। २. कथा-आख्यायिका का कथानक अधिक प्रवाहयुक्त, इतिवृत्तात्मक और आकर्षक होता है किन्तु उसका मूलाधार यथार्थ जीवन नहीं होता। ( बाण की 'हर्षचरित' सदृश कुछ रचनाएँ इसके लिए अपवादस्वरूप हैं ) इसमें कल्पनाजन्य अलौकिक, अतिमानवीय एवं अतिप्राकृत तत्त्वों, पात्रों तथा असंभव घटनाओं की अधिकता. होती है। परिणामस्वरूप उसमें काल्पनिक कथा का चमत्कार और असम्भव या अविश्वसनीय घटनाओं की भरमार होती है । ३. कथा-आख्यायिका में कथानक को कोई शृंखलित योजना नहीं होती। उसका कथानक स्फीतियुक्त, उलझा हुआ और जटिल होता है । प्रायः उसका प्रारम्भ ही कथांतर से होता है और फिर उसमें कथा के भीतर कथा और उस अन्तर्गत कथा में भी गर्भकथाएँ भरी रहती हैं। कुछ कथाएँ ऐसी भी होती हैं जिनमें अनेक कथाएँ किसी एक सूत्र से परस्पर बाँध दी गई रहती हैं। यद्यपि उन सबका अस्तित्व अलग-अलग ही रहता है। ४. कथा-आख्यायिकाओं की कथाओं में विवाह और उसके लिए युद्ध तथा प्रेम के संयोग एवं वियोग पक्ष के वर्णन पर अधिक स्थान दिया जाता है। परिणामस्वरूप उसके नायक प्रायः धीरललित होते हैं और उनका जीवन अयथार्थ पर आधारित होता है। वे प्रायः निजन्धरो होते हैं या कथाकार द्वारा निजन्धरी ऊँचाई तक पहँचा दिये जाते हैं। भारतीय कथाओं में विक्रमादित्य, सातवाहन, उदयन, दुष्यंत, नल आदि ऐसे हो चरित्र हैं जो ऐतिहासिक होते हुए भी निजन्धरी व्यक्तित्व द्वारा गढ़े गए हैं । युद्ध, साहस और वीरता के कार्यों का वर्णन कथा-आख्यायिकाओं में भी होता है पर वैसा नहीं जैसा अलंकृत काव्यों में होता है।
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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