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________________ अध्याय ५ . अपभ्रंश कथा : परिभाषा, व्याप्ति और वर्गीकरण अपभ्रंश-कथाकाव्यों के शैली-शिल्प पर लिखने के पूर्व कथा के काव्यरूप ( पोइटिक फार्म ) पर विचार कर लेना आवश्यक है। कथा शब्द इतना रूढ़ हो गया था कि इसका प्रयोग नाना अर्थों में होने लगा था। संस्कृत की कथ धातू से इस शब्द की रचना हई। इस अर्थ में कथन मात्र को कथा कहा जा सकता है। आज भी बंगला में कुशल समाचार पूछने के लिए 'कथा' का तथा मैथिली में 'कहनी' का प्रयोग होता है। साहित्यिक विधा के रूप में इस शब्द का भिन्न अर्थ और परिभाषा है। कथा अथवा कथाकाव्यों की परिभाषाओं के सम्बन्ध में दण्डी, भामह, रुद्रट आदि संस्कृत लक्षणकारों की मान्यताओं का उल्लेख प्रबन्ध के प्रास्ताविक में कर दिया गया है। जो कुछ कहा जाता है' वह अनिवार्यतः कथा नहीं हो सकती फिर भी कथाकाव्य एक ऐसा व्यापक और लचीला काव्यरूप रहा है कि इसके अन्तर्गत चरित, रास, विलास, पुराण, धर्मकथा, वार्ता, ख्याल, लीला आदि अनेक काव्यरूप समाहित हो गए हैं। कथा काव्य के विषय में प्रचलित कतिपय मान्यताओं तथा धारणाओं का अव• लोकन करने से इसकी पुष्टि होगी। ___'कथा का विशिष्ट अर्थ हो गया है किसी ऐसी कथित घटना का कहना, वर्णन करना जिसका निश्चित परिणाम हो । घटना किसी से भी सम्बन्धित हो सकती है-मनुष्य, अन्य जीवधारी, पशु-पक्षी आदि तथा जगत् के नाना पदार्थे जिनका अनुभव किया जा चुका है या जो कल्पित किये जा सकते हैं। जिस किसी से सम्बन्धित घटना हो, उसकी किसी विशेष परिस्थिति या परिस्थितियों का (निश्चित आदि और अन्त से युक्त ) वर्णन ही 'कथा' कहलाता है। कथाएँ अनेक प्रकार की होती हैं, परन्तु उन्हें दो प्रधान वर्गों में बांटा जा सकता है : १. इतिहास-पुराण की कथाएँ और २. कल्पित कथाएं । ऐतिहासिक कथाओं के आधार पर निर्मित महाकाव्य, खण्डकाव्य, नाटक आदि को साधारणतया कथा-साहित्य या कथाकाव्य नहीं कहते । यद्यपि उपन्यास और कथा-कहानियों का एक
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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