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१.९० : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
है। हम देखते हैं कि नदियाँ अथवा बहती हुई धाराओं की कल्पना चेतना के प्रवाह के प्रतीकार्थ की गई है। इसी प्रकार सरस्वती जो सात नदियों में से एक नदी है तत्त्वज्ञान से बहती हुई चेतना की धारा है। इसी प्रकार हम अन्य छ: नदियों को भी मनोवैज्ञानिक प्रतीक मान सकते हैं।'
इसी अध्याय में हिन्दी प्रेमाख्यानकों के प्रतीकों पर विचार करते. समय संख्यावाची प्रतीकों का उल्लेख हम कर चुके हैं। वेद में सप्त संख्या का बड़ा महत्त्व है। इस पर विचार करते हुए श्री अरविन्द लिखते हैं : 'अन्य प्राचीन विचारधाराओं के समान ही वैदिक पद्धति में सात संख्या का बड़ा महत्त्व है। वेद में बार-बार आता है-सात प्रकार के आनन्द, सप्त रत्नानि; अग्नि की सात लपटें, जिह्वा या किरणें, सप्त अचिषः; संप्त ज्वालाएँ, अध्ययन के सात प्रकार, सप्त धीतयः; सात किरणे अथवा गौवें, अवध्य गौवें, देवमाता अदिति, सप्त गावः; सप्त नदियाँ, सप्त माताएँ अथवा . धातृ गौवं, सप्त मातरः; सप्त धेनवः, धेनु शब्द किरणों और नदियों के लिए समान रूप से व्यवहृत होता है। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि ये सप्त वर्ग वेद के सैद्धान्तिक मूलोद्दे श्यों के वर्गीकरण व सत्ता के तत्त्वों पर आधारित हैं। इन तत्त्वों की जानकारी में प्राचीन विचारकों का मन खूब लगता था और भारतीय दर्शन में हमें विभिन्न प्रकार के एक से बीस तक उत्तर मिलते हैं। ___ इसके आगे श्री अरविन्द वैदिक प्रतीकों को ग्रन्थि खोलते हुए लिखते हैं : 'वृहस्पति सात किरणों वाले मनीषी हैं, सप्तगुः, सप्तरश्मिः; वे सातमुख वाले अंगिरस हैं जो नौ किरणों वाले, दस किरणों वाले अनेक रूपों में उत्पन्न होते हैं। सात मुख सात अंगिरा हैं जो दिव्य शब्द ब्रह्म का उच्चारण करते रहते हैं, जो सत्य के स्रोत स्वर से निकलता है और जिसके वे स्वामी ( ब्रह्मस्पति ) हैं। प्रत्येक वृहस्पति की सात किरणों में से वे एक-एक किरण हैं। इसलिए वे सात भविष्यद्रष्टा हैं, सप्तविप्राः
और सप्तऋषयः हैं जो उन सात ज्ञान की किरणों को अलग-अलग मूर्त रूप देते हैं। ये सप्त किरणें सूर्य के सात घोड़े हैं, सप्त हरितः और उनका संगठन अयस्य का सप्तमुख विचार बन जाता है जिसके द्वारा खोये हुए सूर्य का पुनरुद्धार होता है । वही विचारप्रवाह पुनः सात नदियों के रूप 1. On the Vedas, Shri Aurobindo, pp. 123-24. 2. Ibid. p. 206.