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१८८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
द्वादश प्रधयश्चक्रमेकं त्रीणि नभ्यानि क उ तच्चिकेत । तस्मिन्त्साकं त्रिशता न शङ्कवोपिताः षष्टिर्न चलाचलासः ॥ - अ० २, सू० १६४. अर्थात् जिस रथ के बारह घेरे, एक चक्र और तीन नामियाँ हैं उस रथ का ज्ञाता कौन है ? उसमें तीन सौ साठ मेखलाएं ठुकीं हैं जो कभी. ढीली नहीं होतीं । इसमें एक चक्र अर्थात् एक वर्ष, तीन नामियाँ अर्थात् तीन ऋतुएँ और तीन सौ साठ मेखलाएँ हैं जो वर्ष के तीन सौ साठ दिन ही हैं।
सामान्यतः 'अर्णव' समुद्र के लिए प्रयुक्त होता है । परन्तु वेद में कई स्थानों पर 'तेजोराशि' के लिए अर्णव शब्द का प्रयोग किया गया है । जैसे—
यस्या अनन्तो अह्न तस्त्वेषश्चरिष्णुरणवः । अमरश्चरति रोरुवत् । सा नो विश्वा अति द्विषः स्वसूरन्या ऋतावरी । अतन्नहेव सूर्यः ॥
२
अर्थात् जिस सरस्वती के अनन्त - निर्वाध वेगवान अर्णव हैं और जिसकी शब्दायमान शक्ति भ्रमण करती रहती है, सूर्य जैसे दिन को लाते हैं वैसे ही सरस्वती सत्य ज्योति से भरी हुई अपनी बहिनों ( शक्तियों ) के साथ सबके शत्रुओं को पराभूत कर दे। एक दूसरे स्थान पर भी अर्णव का प्रयोग देखिए :
उद्वेति प्रसवीता जनानां महान् केतुरर्णवः सूर्यस्य । समानं चक्रं पर्याविवृत्सन्यदेतशो वहति धूर्षु युक्तः
'सबको उत्पन्न करने वाले सूर्य की महाज्योति और तेजोराशि प्रकट हो रही है । समान रूप से यह चक्र को घुमाती है, जिसकी धुरी में लगे हुए हरे रंग ( एतश ) के घोड़े खींचते हैं ।'
हिनरिख ज़िमर ने अपनी पुस्तक Myths and Symbols in Indian Arts and Civilization में हिन्दू मिथक और प्रतीक कथाओं पर बहुत विस्तार से लिखा है । ज़िमर के अनुसार सभी भारतीय देवताओं
१. ऋग्वेद, पृ० ३२१.
२ . वही, ३. वही,
६.५.६१.८-९.
७.४.६३.२.