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. . सूफ़ी काव्यों में प्रतीक-विधान और भारतीय प्रतीक-विद्या : १८७
द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते। तयोरन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्नन्नन्यो अभि चाकशीति ॥'
-अ० २, सू० १६४. इसमें वृक्ष संसार का प्रतीक है, जो दो पक्षी हैं वे जीवात्मा और परमात्मा के प्रतोक हैं। जीवात्मारूपो पक्षी संसार के मोह-मायारूपी फलों को खाने में लगा रहता है और परमात्मा निलिप्त रहता है। वेद का ही एक उदाहरण और देखने से पता चलता है कि उसमें दस युवतियों को दस उंगलियों का प्रतीक माना गया है। उत्तम उद्देश्य वाली दो भिन्न रूपिणी स्त्रियाँ गमनशील हैं। दोनों एक-दूसरे के बालकों का पोषण करती हैं। एक से सूर्य अन्त प्राप्त कराता और दूसरी से अग्नि सुन्दर दीप्ति से युक्त होता है। त्वष्टा के इस खेलने वाले शिशु को निरालस्य दसों युवतियाँ ( दस उंगलियाँ ) प्रकट करती हैं : ।
द्वे विरूपे चरतः स्वर्थे अन्यान्या वत्समुप धापयते। हरिरन्यस्यां भवति स्वधावाञ्छुक्रो अन्यस्यां ददृशे सुवर्चाः॥ दशेमं त्वष्टुर्जनयन्त गर्भमतन्द्रासो युवतयो विभृत्रम् । तिग्मानीकं स्वयशसं जनेषु विरोचमानं परिषींनयन्ति ॥
-अ० १, सू० ९५. .. ऋग्वेद में ही बताया गया है कि केशयुक्त तीन देवता नियमक्रम से दर्शन देते हैं। एक वर्ष में बोता है. एक बलों से संसार को देखता है
और एक का रूप दिखाई नहीं पड़ता। इसमें प्रतीकात्मक शैली में ही • यह बताया गया है कि जिन दो देवताओं का रूप दिखाई पड़ता है वे
हैं अग्नि और सूर्य तथा जिसका रूप दिखाई नहीं पड़ता वह वायु है : '.'. त्रयः केशिन ऋतुथा वि चक्षते संवत्सरे वपत एक एषाम् ।। विश्वमेको अभि चष्टे शचीभिर्धाजिरेकस्य ददशे न रूपम् ॥
-अ० २, सू० १६४. एक अन्य स्थान पर वर्ष भर की ऋतुओं, माह और दिनों की संख्या को प्रतीकों के माध्यम से ही समझाया है : १. ऋग्वेद ( प्रथम खण्ड ), संपा०-पं० श्रीराम शर्मा, पृ० ३१६. २. वही, पृ० १८६. ३. वही, पृ० ३२०.