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________________ . .. सूफ़ो काव्यों में प्रतीक-विधान और भारतीय प्रतीक-विद्या : १८३ इन आधारों पर चित्रावली की कथा के आध्यात्मिक स्वरूप से हम परिचित हो सकते हैं। सूफी कवि कासिमशाहकृत हंसजवाहिर नामक प्रेमाख्यान भी इन्हीं के समान आध्यात्मिक तथ्य प्रकट करता है। कवि संसार की नश्वरता के विषय में अपने विचार प्रकट करते हुए कहते हैं : कासिम जक्त जान सब धोखा, जो जग भूल गयो सो खोखा। धोखा गगन फरै दिन राती, धोखा देखि बलबला मांती। धोखा नगर कोटि घर बारा, धोखा द्रव्य और रूप सिंगारा। धोखा राजकाज सुख भोगू, धोखा सब लक्षण कुल लोगू। धोखा किया पुरुष जहं पाई, धोखा अहै सबै दुनियाई ॥' नूरमुहम्मद का इन्द्रावती नामक एक प्रेमाख्यानक है। इसकी कथा में कवि ने एक-दो पात्रों के अतिरिक्त सभी पात्रों के नाम प्रतीकात्मक हो रखे हैं। अन्य सूफी काव्यों की भाँति ही इसमें राजकुमार जीवात्मा और इन्द्रावती ब्रह्मज्योति है। कवि ने इस विषय में स्वयं ही कहा है कि इन्द्रावतो उस दीपक-ज्योति के समान है जिस पर संसार ही पतंगा बन गया है : .. __ जेहि दरसन के दीप पर है पतंग संसार। प्रेम तेहिक तुम लीन्हा मरै न नाम तोहार ॥ : इन्द्रावती के दिव्य सौन्दर्य को बिना देखे ही लोग सराहते रहते हैं । . उसके रूप में दैवीय शक्ति है । वह अपनी दृष्टि से जिसको देख लेती है फिर उसे संसार अच्छा नहीं लगता। वह परमात्मा की ओर उन्मुख हो जाता है : . जो काहअ पर डारै डोटी । सो जन देइ जगत दिस पीठी॥ ___अस रूपवन्ती सुन्दर आहै। बिनु देखे सब ताहि सराहै । सूफी काव्यों में चन्द्र-सूर्य का उल्लेख प्रतीकों के लिए किया गया है, इसका उल्लेख पोछे किया गया है। हर भक्त अथवा साधक सारे संसार को उसी परमात्मा से प्रकाशित मानता है। इन्द्रावती का तेज कवि ने १. हंस-जवाहिर, पृ० २१. २. इन्द्रावती, पृ० ४५. ३. वही.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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