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________________ . सूफ़ी काव्यों में प्रतीक-विधान और भारतीय प्रतीक-विद्या : १८१ गुपुत तोहि पावहिं का जानी । परगट मंह जो रहहि छपानी॥ चतुरानन पढ़ि चारौ वेदू । रहा खोजि पै पाव न भेदू ॥ संकर पुनि हारे के सेवा । ताहि न मिलिज आर को देवा ॥ हम अंधी जेहि आप न सूझा । भेद तुम्हार कहाँ लौं बूझा ॥ कौन सो ठाऊं जहाँ तुम नाहीं। हम चषु जोति न देखहि काहीं॥ पावै खोज तुम्हार सो, जेहि देखलावहु पंथ । कहा होइ जोगी भए, और पुनि पढ़े गरंथ ॥ कथा में राजकुमार सुजान का सुबुद्धि नामक मित्र है, वह भी आध्यात्मिक दृष्टि का ही प्रतीक है। साधना बिना सद्बुद्धि के योग के नहीं होती। सद्बुद्धि गुरु देता है। उसमान गुरु के महत्त्व को स्वीकार करते हैं : कथा मान कवि गायेउ नई । गुरु परसाद समापत भई ॥२ जैसा कि लिखा जा चुका है कि चित्रावली विद्या की प्रतीक है और सुजानरूपी साधक उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। चित्रावली के स्वरूप का वर्णन कथा में परेवा द्वारा कराया गया है। उसका वह स्वरूप पूर्णतः आध्यात्मिक है। परेवा कहता है कि चित्रावली वह है जिसका तीनों लोकों में ध्यान किया जाता है। देवलोक में सभी उसका • ध्यान करते हैं। पाताललोक में सभी उसकी सेवा करते हैं। मर्त्यलोक • में प्रत्येक घर में उसकी चर्चा होती है। पक्षी उसी को पाने के लिए उदास घूमते हैं। पर्वत एकस्थ होकर उसके नाम का जाप करते हैं। पृथ्वी एक पग पर खड़ी हो उसी की सेवा करती है। जो व्यक्ति जानबूझकर उसके नाम को भूलता है वह व्यक्ति जोवित होते हुए भी अभागा है। चित्रावली का स्वरूप ऐसा दीप्तिमान है कि चन्द्र-सूर्य भी उसकी समता नहीं कर सकते । वह व्यक्ति धन्य है और उस व्यक्ति का हृदय धन्य है जिसने ऐसे स्वरूप वाली चित्रावली के मार्ग पर अपना मन लगा दिया है : बह चित्रावलि आहै सोई। तीन लोक वेदै सब कोई॥ सुरपुर सबै ध्यान ओहि धरहीं । अहिपुर सबै सेव तेहि करहीं। १. चित्रावली, पृ० ४७-४८. २. वही, पृ० २३६.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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