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________________ सूफ़ी काव्यों में प्रतीक-विधान और भारतीय प्रतीक-विद्या : १७९ जानहु सुरज किरिन हुति काढ़ी । सूरुज करा घाटि वह बाढ़ी। भा निसि माह दिन क परगासू । सब उजिआर भएउ कबिलासू॥ ग्रन्थ के अन्त में जायसी ने सभी पात्रों के प्रतीकार्थों को स्पष्ट करके भ्रम-निवारण कर दिया है : तन चितउर मन राजा कीन्हा । हिय सिंघल बुधि पदमिनि चीन्हा॥ गुरु सुआ जेइ पंथ देखावा । बिनु गुरु जगत का निरगुन पावा ॥ नागमती यह दुनिया धंधा । वांचा सोइ न एहि चित बंधा॥ राघव दूत सोई संतान । माया अलाउद्दीं सुलतान ॥ प्रेम कथा एहि भांति विचारहु । बूझि लेहु जौ बझै पारहु ॥ कथा में चित्तौड़ शरीर का, रतनसेन मन का, सिंहल हृदय का, पद्मावती बुद्धि की, हीरामन तोता गुरु का, नागमती प्रपंच, राघव शैतान और अलाउद्दीन माया का प्रतीक है। प्रसंगात् इसका उल्लेख पहले भी किया गया है। साधना के क्षेत्र में इन सबकी उपयोगिता एवं अनुपयोगिता का प्रश्न है। गुरु साधना-मार्ग का निदेशक होता है । गुरु की कृपा से ही शिष्य साधना के भेद को जानता है : चेला सिद्धि सो पावै, गुरु सौं करै अछेद । गुरु करें जो किरिया, पावै चेला भेद ॥ 'हीरामन सुआ गुरु का प्रतीक है : . हीरामनि राजा सौं बोला। एही समुंद आइ सत डोला॥ . एहि ठाउं कहं गुरु संग कीजै । गुरु संग होइ पार तो लीजै ॥ . पूछा राजें कह गुरु सुआ। न जनौ आज कहां दिन उवा ॥ पदमावत की कथा में रतनसेनरूपी साधक प्रेममार्ग की नागमती... रूपी प्रपंच, राघव शैतान और अलाउद्दीनरूपी माया आदि बाधाओं को · हटाता हुआ सिंहल द्वीप अर्थात् हृदय में पहुंचता है। वहाँ से पुनः नौ द्वारों को पार करता हुआ दशम द्वार या ब्रह्मरन्ध्र में पहुंचता है। वहीं १. पदमावत, पृ० ५१. २. जायसी-ग्रन्थावली, पृ० ३०१. ३. वही, पृ० १०८. ४. पदमावत, पृ० १४९. ५. वही, पृ० १७३.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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