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सूफ़ी काव्यों में प्रतीक-विधान और भारतीय प्रतीक-विद्या : १७७
जोय-सूफ़ीमत का तात्पर्य कष्टों की उपस्थिति में भी हर्ष एवं कृतज्ञता
प्रदर्शित करना है। ऐन- , , महान् उद्देश्य एवं ईश्वर की महान अनु
कम्पा है। , अवैध वस्तुओं से घृणा एवं परमात्मप्रसाद से
प्रेम है। , मानवत्व से ऊपर उठकर परमात्मा तक पहुँ
चना है। काफ़
उस प्रकाश की प्राप्ति है जो मुक्ति देता है। काफ- , , वास्तविकता-लाभ एवं क्षणिकता का विनाश
मोम
लाम-, , परमेश्वर से एकत्व तथा अन्य वस्तुओं से
विछोह है।
आत्मचिन्तन है। नून
लालसा साफल्य की प्राप्ति को आतुरता है । परमेश्वर का क्रोध एवं दण्ड देने के समय भी
निर्विकार होना है। वाव- , , सत्यमार्ग के परिपालन से परमेश्वर की
प्राप्ति है। लाम-अलिफ-- , , परमेश्वर की सत्ता के गुप्त भेद का प्रकाश
ये-
,
, पाप-कारण के समूलनाश का दृढ़ निश्चय
. 'इन परिभाषाओं का मनन करने से सूफीमत की सहनशीलता, उदारता एवं स्नेहार्द्रता का परिचय मिलता है। इसमें संदेह नहीं, परन्तु ये प्रतीकों की श्रेणी में रखे जाने चाहिये अथवा नहीं, यह अवश्य विचारणीय है। सूफी साहित्य में वर्णमाला पर आधारित प्रतीकों का उल्लेख मेरो दृष्टि में नहीं आया। उर्दू के कुछ अक्षर ऐसे हैं जिनमें बिन्दु (नुक्ते) के हेर-फेर से शब्दों में काफी अन्तर पड़ जाता है, जैसे खुदा से जुदा १. हिन्दी सूफ़ी कवि और काव्य, पृ० २२६.
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