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________________ १७६ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक पाए रूप रूप जस चहे। ससि मुख सब दरपन होइ रहे। नैन जो देखे कंवल भए निरमर नीर सरीर। - हंसत जो देखे हंस भए दसन जोति नग हीर ॥' . इन प्रतीकों के अतिरिक्त सूफियों ने दैनिक जीवनोपयोगी पदार्थों का भी प्रतीकार्थों के लिए प्रयोग किया है। उदाहरणार्थ जायसो ने कत्था, चूना, पान और सुपारी का उल्लेख किया है । ये चारों पदार्थ चार प्रकार को शून्य अवस्थाओं के प्रतीक हैं । पान शून्य, सुपारी अति शून्य, कत्था महाशून्य और चूना सर्वशून्य के प्रतीक हैं । पान सुपारी खैर दुहं मेरै करै चक चुन । __ . तब लगि रंग न राचै जब लगि होइ न चून ॥२ . . सूफी प्रतीकों के संदर्भ में डॉ० सरला शुक्ल ने 'इजिप्शियन लायब्रेरी' के हस्तलिखित ग्रन्थ 'अल सिर्रफि अनफास अल सूफिया' में वर्णित सूफ़ी : मत को उनतीस परिभाषाओं को उद्धृत किया है जो इस प्रकार हैं : अलिफ - सूफ़ी मत का तात्पर्य सद्गुणों की प्राप्ति एवं दुर्गुणों का अभाव है। . आत्मा की खोज एवं लौकिक सुखों का त्याग है। सिद्धांत-रक्षा एवं .तुच्छ विचारों का त्याग है। परमेश्वर की सेवा में हृदय की दृढ़ता है। विषय-वासनाओं पर नियन्त्रण रखना है। गुप्त भेद की सुरक्षा, धर्मात्माओं की श्रद्धा एवं पतितों का पार्थक्य है। संग्रह-त्याग ही नहीं, उसकी आशा का भी त्याग है। __to te to the १. पदमावत, पृ० ६५. २. देखिए-पदमावत में डा० वासुदेवशरण अग्रवाल का प्राक्कथन, पृ० ४७. ३. वही. ४. हिन्दी सूफ़ी कवि और काव्य, पृ० २२५,
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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