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________________ .. सूफ़ी काव्यों में प्रतीक-विधान और भारतीय प्रतीक-विद्या : १७१ एकात्म होना ही सूफियों की अंतिम परिणति है। जायसी ने पद्मावती के कानों के कुण्डलों को सूर्य और चन्द्रमा के समान चमकीला बताया है: दुई दिसि चाँद सुरुज चमकाहीं । नखतन्ह भरे निरखि नहिं जाहीं।' जैसा कि पहले लिखा जा चुका है, सोम अथवा चन्द्र स्त्री का प्रतीक है और सूर्य पुरुष का प्रतीक है। जायसी ने एक स्थान पर स्पष्ट ही लिखा है। सखी देखावहिं चमकहु बाहू । तूं जस चाँद सुरुज तोर नाहू ॥ छपा न रहे सुरुज परगासू । देखि कंवल मन भएउ हुलासू॥ अर्थात् पद्मावती को सखियां उसके पति को दिखाकर कहती हैं कि तू जैसे 'चांद' है वैसे ही तेरा पति 'सूरज' है। सूर्य के प्रकाश से रात्रिरूपी अंधकार नष्ट हो जाता है । कमल खिल उठते हैं। सूर्य और चन्द्रमा का मिलन संभव नहीं दिखाई पड़ता परन्तु जायसी ने प्रताकों के माध्यम से वह भी संभव कर दिखाया और इस बात की भी पुष्टि कर दो कि चन्द्र स्त्रो का और सूर्य पुरुष का प्रतीक है : चाँद सुरुज दुइ निरमल दुवौ संजोग अनूप । सुरुज चाँद सौं भूला चाँद सुरुज के रूप ॥ .. पद्मावती ने रतनसेन को देखा तो उसके मन में काम के आठों भाव जाग्रतं हो गए । जायसी ने इसे इस प्रकार लिखा है। .. देखा चांद सुरुज जस साजा । अस्टौ भाउ मदन तन गाजा॥ सूर्य और चन्द्र के प्रतीक रूपों को देखा । दीपक और पतंग का प्रेम • भी किसी से छिपा नहीं । जब तक दोपक की लौ से पतंग जलकर राख नहीं हो जाता, वह दीपक पर ही मंडराता रहता है। इसे उसकी प्रोति, स्वभाव अथवा यदि मानते हैं तो नियति भी कह सकते हैं : १. वही, पृ० १०७.. २. वही, पृ० २६५. ३. वही, पृ० २७२. ४. वही, पृ० २६५.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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