SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . . सूफ़ो काव्यों में प्रतीक-विधान और भारतीय प्रतीक-विद्या : १६९ पास पाइ गुलाब गुलाब सनेही, चहचहात आनन्द देही। अमरकोस मृगमद नित रागी. प्रेम की रीति निरार सुभागी॥ पद्मावती को जब रतनसेन का वियोग सताता है तो उसे रात्रि को नींद नहीं आती। शय्या पर लेटती है तो उसे ऐसा लगता है कि वहां किसी ने केंच ( केंच की कली के रेशे से शरीर पर अत्यधिक जलन और खुजाल होती है ) लगा दी है। चन्द्रमा, चन्दनादि सभी उसे ताप देते हैं । विरहाग्नि में शरीर झुलसता है। रात्रिकाल एक युग के समान बीतता है आदि पदुमावति तेहि जोग संजोगां । परी पेम बस गहें बियोगां ॥ नोंद न परै रैनि जौं आवा । सेज केवांछ जानु कोई लावा ॥ दहै चाँद औ चन्दनचीरू । दगध करे तन बिरह गंभीरू ॥ कलप समानरैनि हठि बाढ़ी। तिल तिल मरि जुग जुग बर गाढ़ो॥ जीवात्मा जब प्रियतम परमात्मा के वियोग में तडफतो है तो उसकी. दशा वही होती है जो जल के बिना मछली की। इसी बात को जायसी ने पद्मावती के संदर्भ में प्रकट किया है। पद्मावती मछली की तरह तड़फती है और 'पिउ-पिउ' रटते-रटते पपीही हो हो गई है : . कौनमोहनी दहुँ हुत तोही। जो तोहि विद्या सो उपनी मोही॥ बिनु जल मीन तलफ जस जीऊ। चातकि भइ कहत 'पिउ-पिऊ'॥ चन्द्रमा और चकोर का प्रेम बहचित है। जिस प्रकार साधक ‘जीवात्मा परमात्मा से मिलने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता है उसी प्रकार चन्द्रमा को पाने के लिए चकोर मंडराता ही रहता है । सूफियों ने चन्द्र और चकोर का प्रतीकों के लिए उपयोग किया है । कवि नरमुहम्मद ने एक स्थान पर नेत्र के लिए चकोर और मुख के लिए चन्द्रमा का रूपक दिया है: ___मन लोचन मो चंद दिसि, रहिगा चितै चकोर। चंद बिलोकत रहि गयउ, जिन चकोर की ओर ॥ १. अनुराग बांसुरी, पृ० ११२. २. पदमावत, पृ० १६१. ३. इन्द्रावती. १० ६०.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy