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१६८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
शरीर को स्थिति दिखाते हुए शरोअत, तरीकत, हक़ीकत और मारिफ़त की स्थिति को ही समझाया है। शरीर एक मूर्तिमान् मन्दिर है, उसमें मन एक फूलवारी है। तीसरी अवस्था में जोव एक हक़ीकत है। चौथी अवस्था मारिफत 'ज्योतिसदन' है जहां अज्ञानान्धकार का पूर्ण क्षय हो जाता है :
एक सरीर मंदिर छविधारी। दूसर है यह मन फुलवारी॥ तीसरे माहि जीवन अस्थाना । चौथा जोति सदन हम जाना ॥ .
जायसी ने सिंहलगढ़ का वर्णन करते समय जिन सात चढ़ावों का . वर्णन किया है वे भी साधना के क्षेत्र में प्रतीक हैं :
कहाँ तोहि सिंघलगढ़ है खंड सात चढ़ाउ। .
फिरा न कोई जिअति जिउ सरग पंथ दै पाउ॥ इसी प्रकार नव द्वार इंद्रियों के प्रतीक के लिए, पाँच हरकारा ज्ञानेन्द्रियों
आदि के लिए अनेक प्रतीकात्मक शब्द इन सूफी काव्यों में मिल जाते हैं। .. साधनात्मक प्रतीकों के अतिरिक्त सूफ़ियों ने जीवात्मा और परमात्मा के प्रेम स्थापन में शुक, बुलबुल, चमन, चन्द्रमा-चकोर, सूर्य-कमल, पतंग-दीपक, भौंरा-गुलाब, जल-मीन और बाँसुरो. आदि प्रेम-प्रतीकों की सहायता ली। जब सूफी कवि कमल और सूर्य के प्रीति निर्वाह की बात कहता है तब वह जीवात्मा और परमात्मा के प्रेम की ओर इंगित करता है। नूरमुहम्मद कमल-सूरज और चुम्बक तथा लोहे का वर्णन प्रतीकात्मक हो करते हैं :
तौ उत्तम को ध्यान भला है, कमल सुरज को प्रीति निबाहै। कहां मयंक कहा ससिनेही, दीपक कहां कहां तमगेही॥ आनवस्तु पर उपनत दोहा, चुम्बक पाहन चाहत लोहा। देखौ पतंग गा मन रोझा, मन भावन मरा ऊपर सोझा। पंकरह तिमिरारि लुभाना, जलमहं ताहि देखि बिगसाना।
१. इन्द्रावती, पृ० ७१. २ पदमावत, पृ० २०४. ३. अनुराग बांसुरी, पृ० १०४.