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________________ १६४ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक की है, द्वितीय प्रेम की घाटी है । तृतीय घाटो ज्ञान की है । चौथी घाटी विच्छेद की है, इसमें सारी इच्छाएं विलीन हो जाती हैं। पांचवीं घाटी प्रियमिलन को है। छठी घाटी विस्मय की है और सातवीं घाटी आत्मलय को है। उक्त संदर्भ को दृष्टि में रखकर भारतीय साधना की ओर ध्यान-दें तो हमें योगदर्शन, बौद्ध और जैन साधनाओं में भी इस प्रकार की अवस्थाओं का स्पष्ट उल्लेख दिखाई पड़ेगा। योगदर्शन के अनुसार योग के यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि ये आठ अंग हैं।' बौद्धों ने अष्टांगयोग के स्थान पर षडंगयोग को मान्यता दी। जैन लोग आत्मा को स्वतन्त्र सत्ता में विश्वास करते हैं। इसलिए वे आत्मा का परमात्मा में विलय न दिखाकर केवलज्ञान और मोक्ष को स्थिति को चरम लक्ष्य मानते हैं। इसके लिए साधक को चौदहमिथ्यात्व, सासादन, मिश्र, अविरत, देशविरत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसंपराय, उपशान्तमोह, क्षीणमोह, संयोगीजिन और अयोगीजिन-गणस्थानों को पार करना होता है। केवलज्ञान की स्थिति में ध्यान, ध्याता और ध्येय का कोई विकल्प नहीं रह जाता। संक्षेप में यह कहना होगा कि प्रत्येक धर्मावलम्बी ने सोपानों की स्थितियां स्वीकार की हैं। ___ सूफी साधना में जिन सात मुकामातों अथवा चार अवस्थाओं का विधान है और इन मुकामातों को पार करने के लिए सूफी साधक बड़ो से बड़ी कीमत अदा करने को तैयार रहता है--इसो को ध्यान में रखकर सूफी कवियों ने साधनापथ में आनेवाली बाधाओं का प्रतीकात्मक संकेत समुद्रों, पर्वतों, घाटियों, नदियों आदि के रूप में किया है। जायसी ने राजा के कूच (प्रयाण ) करने पर मार्ग में आनेवाली बाधाओं का जो वर्णन किया है वे साधना-पथ की बाधाओं के प्रतीक बनकर ही सामने आते हैं : is the Valley of Annihilation. -Persian Mystics, Attar, pp. 29-30. १. डा० धर्मवीर भारती, हिन्दी साहित्य कोश, पृ० ८८०. २. वही. ३. देखिए-गोम्मटसार आदि ग्रंथ,
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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