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सूफ़ी काव्यों में प्रतीक -विधान और भारतीय प्रतीक-विद्या : १६३
अपेक्षाकृत काव्यात्मक प्रतीकों के अधिक दृष्टिगत होते हैं । जैसे परमतत्त्व के साक्षात्कार के लिए कुछ साधकों ने चार अवस्थाएँ मानी हैं और कुछ ने सात स्थितियां ( मुक़ामात ) स्वीकार की हैं । सूफियों की मान्यता है कि साधना पथ पर निरन्तर बढ़ते जाने के लिए सात मुक़ामातों का बड़ा महत्त्व है । साधक अपनी साधना को क्रमशः अग्रसर करता जाता है और इन मुक़ामातों पर ठहर-ठहर कर अपनी स्थिति को मजबूत करता है । एक साथ किसी मार्ग को तय करने में थकने की संभावना तो रहती ही है — खतरे को उसमें कहीं अधिक आशंका हो जाती है। सूफी साधक अपने इष्ट की खोज में 'सालिक' या यात्री की भूमिका का निर्वाह करता है | वह अपनी यात्रा पर पहुंचने के लिए सात मुकामातों को तय करता हुआ ( शरीअत, तरीकत, मारिफ़त आदि ) अंतिम लक्ष्य ' फनाफिल - हक़' को प्राप्त करता है अर्थात् परमात्मा में विलीन हो जाता है। इस प्रकार सूफी साधक की यात्रा समाप्त हो जाती है और उसकी प्यास बुझ जाती है, वह अपने प्रियतम में एकाकार हो जाता है । रूमी के अनुसार अन्तिम लक्ष्य 'फना' तक साधक को पश्चात्ताप, त्याग, परमात्मा में विश्वास और जप की स्थितियों को पार करना होता है । अत्तार ने इन्हीं स्थितियों को सात घाटियों के नाम से प्रकट किया है । पहली घाटी खोज
1. The Sufi sets out to seek God, calls himself a traveller (Salik ), he advances by slow stages ( Magamat) along a · path ( Teriqat ) to the goal of union with reality (FanafilHaqq). – Mystics of Islam, p. 28.
2. It is the way that leads away from self, though repent. 'ence, renunciation, trust in god ( Tawakkul), recollection (Zikar) to ecstasy and union with God. The final stage is fana, culminating in pana-al-fana.—Influence of Islam, p. 150.
3. The first of the seven is the Valley of Search, the second is the Valley of Love. The third Valley is that of Knowledge. The fourth stage is the Valley of Detachment. The fifth Valley is that of Unification. The sixth Valley is the Valley of Bewilderment, the seventh and the last Valley