SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६२ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक पाह: पदमावत में रतनसेन के मधुपान के समय पद्मावतो आग्रह करती है कि मधु को थोड़ा-थोड़ा चखकर ही पियें । परन्तु वह अपने प्रियतम की हर आज्ञा को शिरोधार्य करने की इच्छा के साथ ही ऐसा सुझाव देती है। जायसी ने सुरा को प्रेमरस के प्रतीक अर्थ में ही लिया है : बिनति करै पदुमावति बाला । सो पनि सुराही पोउ पियाला। .. पिउ आएसु माथे पर लेऊ । जौं मांगै नै नै सिर देऊं। । पैपिय बचन एक सुनु मोरा । चाखि पियह मधु थोरइ थोरा। पेम सुरा सोई पैपिया । लखै न कोइ कि काहूं दिया ॥३१९॥ परन्तु जो साधक प्रेमरस का पान कर च का है वह साधना में आने वाली मौत जैसी बाधाओं से भी विचलित नहीं होता । उसे अपनी साधना में ही डूबा रहना आनन्ददायक होता है। इसी भाव के प्रतीकार्थ जायसी ने लिखा है : . .. सुनु धनि पेम सुरा के पिएं। मरन जियन डर रहै न हिएं। जहं मद तहां कहां संभारा । के सो खुमरिहा के मंतवारा। सो पै जान पियै जो कोई। पी न अघाइ जाइ परि सोई। जा कहं होइ बार एक लाहा । रहै न ओहि बिनु ओही चाहा। अरथ दरब सब देइ बहाई। कह सब आउ न जाउ पियाई। रातिहुं देवस रहै रस भीजा। लाभ न देख न देखै छीजा। भोर होत तव पलुह सरीरू । पाव खुमरिहा सीतल नीरू । एक बार भर देहु पियाला बार बार को मांग। मुहमद किमि न पुकारै अस दांउ जेहि खांग ॥३२०॥ नूरमुहम्मद ने मदिरा के विषय में लिखा है : बिना कदम्बरि के पिये, त्रास न मन सो जात। दयावती होइ दीजिये, होलिक लागी प्रात ॥ सूफी काव्यों में साधना एवं दर्शन से सम्बन्ध रखने वाले प्रतीक १. पदमावत, पृ० ३१७-१८. २. पदमावत, पृ० ३१८. ३. इन्द्रावती, प० ३४.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy