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सृफ़ो काव्यों में प्रतीक-विधान और भारतीय प्रतीक-विद्या : १५७ .
तब वे मूल्यहीन हो जाते हैं। इस तरह का खतरा भी सूफी काव्यों में कम नहीं मिलता।
सूफी प्रेमाख्यानकों एवं सूफी सिद्धान्त में प्रेम प्रधान तत्त्व है, इसका उल्लेख किया जा चुका है। इस प्रेम का अर्थ रति से है। रति का जो आलम्बन है वह सूफियों के प्रियतम का प्रतीक है। विदेशी सूफियों ने रति के आलम्बन के रूप में किशोर को चुना, स्त्री को नहीं। इसका कारण यह था कि उनका प्रियतम सदैव किशोर के रूप में ही प्रस्तुत होता है। परन्तु यह लौकिक आलम्बन के रूप में स्वीकार किया गया। उनके प्रेम का जो प्रधान पात्र है वह तो परमात्मा ही है । यही कारण है कि सूफी मसनवियों में दाम्पत्य भावना के जिस प्रेम का वर्णन किया गया है उसमें आलम्बन परमात्मा का द्योतक पाया जाता है। प्रेम की पुकार अविरल गति से होती रहे इससे सूफियों ने सुरति को स्थान दिया। सूरति में आनन्द अथवा लगन तभी आ सकती है जब सुरा हो, अतः सुरति के साथ सूफियों ने सुरा को भी अपना लिया । जब सुरति, सुरा भी हो गई तो · इस सुरा को ढालकर देनेवाला भी कोई होना ही
चाहिए । अतः साकी या माशूक को स्थान मिला। यही सूफी काव्यों में • प्रतीक बन गए । भारतीय सफी प्रेमाख्यानकों में यहाँ का प्रभाव होने के कारण साक़ो का अन्तर्भाव प्रेमिका में कर लिया गया। इन कवियों ने प्रेमिका का वर्णन जहाँ भी प्रस्तुत किया, उसके नख-शिख सौन्दर्य का भा सविस्तार चित्रण किया । वैसे रूप-सौन्दर्य का वर्णन करते समय भारतीय साहित्य में नख-शिख वर्णन की परम्परा बहुत प्राचीन रही है। परन्तु सूफी साहित्य में यह नख-शिख वर्णन भी प्रतीकात्मक हो गया। इस संदर्भ में डा० चन्द्रबली पांडे ने लिखा है कि 'जब माशूक प्रतीक है तो उसका नख-शिख भी उसके अन्तर्गत समझा जायेगा। उसके अंग-अंग प्रतीक होंगे । नख-शिख में मुख की प्रधानता होती है । उसका वर्णन प्रायः
1. 'In religion, symbolism is a help and hindrance. It provi
des a sign for an idea and useful in recalling the idea. But when, instead of recalling, it replaces the idea, it becomes a menace.' -Hopkins, Origin and Evolution of Religion, p. 45.