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१५६ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
से खतरा पैदा हो गया था । प्रतीकों के प्रयोग से सूफियों को दुहरा लाभ हुआ-एक तो वे अपने मत का प्रचार निर्वाधरूप में कर सके, दूसरे कट्टर इस्लाम के रूढ़िवादी आक्रमण के सामने ये प्रतीक ढाल का काम देने लगे । संभवतः फारिज ने इसीलिए कहा कि प्रतीकों के प्रयोग से दो लाभ प्रत्यक्ष होते हैं। एक तो प्रतीकों को ओट लेने से धर्म-वाधा टल जाती है, दूसरे उनके उपयोग से उन बातों को अभिव्यंजना भी ख़ब हो जाती है जिनके निदर्शन में वाणी असमर्थ अथवा मूक होती है।
प्रतीक शब्द की व्याख्या करते हुए जेम्स हेस्टिग्स ने कहा है कि प्रतीक किसी दृश्य या श्रव्य रूप का अथवा किसी विचार, भाव या अनुभव का द्योतक है, जो तथ्यरूप में ज्ञान और कल्पना के माध्यम से अनुमेय को व्याख्या करता है । इस विषय में जेम्स ने प्रतीकों का प्रयोग दो प्रकार से संभव बताया है : एक तो कार्यों या शब्दों के द्वारा प्रतीकात्मक अभि-- व्यक्ति, दूसरे कला के माध्यम से अभिव्यक्ति । इस विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रतीक स्वयं किसो भावना के प्रतीक हैं अर्थात् जो भावना या सूक्ष्म तत्त्व भाषा में बंध नहीं पाता उसे प्रतीक रूपायित करने का साधन है। प्रतीक कहलाने वाले वे शब्द या भाव और कार्य क्या हैं जो प्रतीक नाम से बोधगम्य होते हैं। प्रतीकवाद धर्म के लिए साधक भी है और बाधक भो । प्रतीक किसो विचार या भाव के द्योतक रहने तक उपयोगी सिद्ध होते हैं । परन्तु जब वे द्योतक न रहकर भाव ही बन जाते हैं
१. डा० चन्द्रबली पांडे, तसव्वुफ सूफ़ोमत, पृ० ९७-९८. 2. “A symbol is a visible or audible sign or emblem of some
thought, emotion, or experience, interpreting what can be really grasped only by the mind and imagination by something which enters into the field of observation. So far as Greek and Roman religions are concerned, we need speak only of two kinds of symbols-symbolic representation by means of actions or words and symbolic representation in art.'-James Hastings, Encyclopaedia of Religion and Ethics, Vol. 12. p. 139.