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________________ सूफ़ी काव्यों में प्रतीक -विधान और भारतीय प्रतीक- विद्या : १५५ रूप में ज्यों की त्यों मिलती हैं । इतना ही नहीं, इन सूफ़ी प्रेमाख्यानकों मैं प्रतीकात्मक शैली से भी काम लिया गया है । भारत में प्रतीकों का वैदिक कालीन इतिहास आज भी वर्तमान है । बहुत कुछ प्रतीक हिन्दो की संतकाव्य - परम्परा से सूफी परम्परा में ले लिए गए । विद्वानों में इस बात की बहुत चर्चा रही है कि कथा का प्रतीक के रूप में प्रयोग अथवा मूलकथा से अन्यापदेशिक आध्यात्मिक अर्थ निकालने की पद्धति सूफ़ियों की देन है । पर यदि अपभ्रंश के मयणपराजय अथवा संस्कृत के प्रबोध - चन्द्रोदय जैसे नाटकों को देखा जाय तो लगेगा कि यह पद्धति भी भारतोय ही है । हिन्दी प्रेमाख्यानकों ( हिन्दी - सूफ़ी ) में प्रयुक्त रूढ़ियों का विवरण पिछले अध्याय में दिया जा चुका है और वहीं यह भी दिखाया गया है कि वे अपभ्रंश प्रेमाख्यानकों अथवा चरितकाव्यों में प्रयुक्त रूढ़ियों से किस कदर जुड़ी हुई हैं । अतः यहाँ मसनवी और चरितकाव्यों के तुलनात्मक अध्ययन के लिए उनकी पुनरावृत्ति करना उचित नहीं है । सूफी प्रेमाख्यानकों में प्रतीकों का क्या उपयोग रहा है - यह अवश्य विचारणीय प्रश्न है । कोई व्यक्ति जब अपनी अन्तर्भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम मात्र भाषा को नहीं बना पाता अथवा यों कहें कि भाषा उसकी अभिव्यक्ति के लिए पूर्ण सक्षम नहीं होती तब वह प्रतीकों का प्रयोग करता है । • सूफी सिद्धान्त की रीढ़ प्रेम है और आध्यात्मिक-अलौकिक प्रेम को . अभिव्यक्त करने के लिए भाषा को साधारण क्षमता कैसे सक्षम हो सकती थी ? अलौकिक भाषा को काव्यों के माध्यम से समझने की शक्ति किसमें थी ? अतः सूफियों ने अपने काव्यों में प्रतीकों, अन्योक्तियों, सूक्तियों . आदि का प्रचुर प्रयोग किया । इस विषय में यह कहना सही है कि 'यदि हम प्रतीकों का प्रयोग न करें तो हमारा दिव्यदर्शन किसी के भी हृदय में उतर नहीं सकता और वह सचमुच औरों के लिए एक ऐसी पहेली बन जाता है जिसका सामान्य बुद्धि, विवेक और विश्वास से कुछ भी सम्बन्ध नहीं रह जाता ।" सूफियों ने अपने साहित्य में प्रतीकों का जो सहारा लिया उसका एक प्रधान कारण यह भी था कि उन्हें कट्टर इस्लामपंथियों डा० चन्द्रबली पांडे, तसव्वुफ अथवा सूफ़ीमत, पृ० १००.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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