SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक ४. साधारणतः मसनवी सर्गबद्ध होते हैं। पहले सर्ग में परमात्मा का गुणानुवाद, दूसरे में पैगम्बर को स्मरण किया जाता है। तीसरे में पैगम्बर के 'मीराज' की चर्चा होती है। बाद में शासक सुल्तान आदि को प्रशंसा रहती है । इसके बाद मूलकथा प्रस्तुत की जाती है। आचार्य शुक्ल ने लिखा है कि 'मसनवी के लिए साहित्यिक नियम तो केवल इतना ही समझा जाता है कि सारा काव्य एक ही मसनवी छन्द में हो, परम्परा के अनुसार उसमें कथारम्भ के पहले ईश्वर-स्तुति, पैगम्बर की वन्दना और उस समय के राजा ( शाहेवक्त ) की प्रशंसा होनी चाहिए। ये बातें पदमावत, इन्द्रावती, मृगावती. इत्यादि सबमें पाई जाती हैं ।'२ इस संदर्भ में पहले से कहा जा चुका है कि भारतीय चरितकाव्यों में भी इसी पद्धति का अनुसरण किया जाता था। फ़ारसी मसनवियों के प्रभाव को दृष्टि में रखकर डा०. रामपूजन तिवारी ने लिखा कि 'हिन्दी सूफ़ी काव्य इस परम्परा से प्रभावित तो अवश्य है लेकिन उसमें हूबहू इसकी नकल नहीं की गई है। भारतीय वातावरण में सूफ़ी मत का विकास अरब और फारस जैसा न होकर मित्र रूप में हुआ। भारतीय विचारधारा से वह बहुत प्रभावित हुआ । हिन्दी का सूफ़ी काव्य जितना भारतीय विचारधारा से प्रभावित मालूम होता है उतना फारसी या अरबी परम्परा से नहीं । जो बात विचारधारा के सम्बन्ध में कही गई है वही शैली-शिल्प के बारे में भी लागू होती है। . __ मसनवी और चरितकाव्यों की शिल्पगत तुलना करने पर यह और भी स्पष्ट हो जाता है कि जिन सूफ़ो प्रेमाख्यानों को तथाकथित मसनवियों की कोटि में रखा जाता है उनमें भी मंगलाचरण प्रक्रिया से लेकर पूर्व कवियों के नामोल्लेख, काव्य रचने का कारण और शुक, चित्र-स्वप्न या प्रत्यक्ष दर्शन से प्रेमोत्पत्ति, नगर-वर्णन के साथ हाट, सर, अश्व, गज, युद्धादि वस्तुवर्णन आदि कन्याप्राप्ति तक की काव्यगत रूढ़ियाँ न्यूनाधिक १. डा० रामपूजन तिवारी, सूफ़ीमत–साधना और साहित्य, पृ० ५२७. . २. जायसी-ग्रन्थावली, भूमिका पृ० ४. ३. डा० रामपूजन तिवारी का 'सूफ़ो काव्य-परम्परा' लेख, अवन्तिका, अक्टूबर १९५४, पृ० ४५.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy