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________________ हिन्दी प्रेमाख्यानकों का शिल्प : १४९ वहहिं जोर छंछाल ते मद्द नीरं । लगे गंउ गुंजार ते भौर भीरं ॥ किये कुंडली कुंड सुडाहलीयं । लसौ चौरमरि जो शृंगार कीयं ॥ विजयपाल० १९८-२०१. अश्वों-हाथियों आदि के अतिरिक्त युद्धों में रणवाद्यों का भी प्रयोग किया जाता था। इन रणवाद्यों में नगारा, भेरी, तूर्य, नीसान, ढोल आदि का प्रचलन था। रणवाद्यों के अतिरिक्त भी बाजों के नाम तत्कालीन काव्यों में आते हैं। छिताईवार्ता में वाद्ययन्त्रों का विवरण इस प्रकार मिलता है : एकणिकर सोहै स्यंगरी। जुवतो जुबन रंग रसभरी। एक रबाब दुतारौ धरे । सुंदरि सुघर बजावै खर॥ ढोलक चंद्रमंडलनि सार। अधिक अपूरब पुजवहि तार। बिबिध बिचख्खिण बोलहिं बैन । जनु कसुंभ केसरि रंगि नैन ॥ एकति कामणि कंघणि जंत्र । मानह बसीकरण के मंत्र । जिती छिताई करी प्रवीण । ते संगीत रंग रस लोण ॥ सरमंडल सरबीण संवारि । मुरज म्रिदंग लोंबर णारि । पैम कपाट पखावज बीन । बैठी लरुणि तमासै लोण ॥ पृ० ११८-११९. रसरतन में बाजों के नाम इस प्रकार आये हैं : धुज पताक तोरन बने, सीच सुधा रस रंग। . पंच शब्द मंगल बजे, भेरो ढोल मृदंग॥ चलो कुंवर पूजन गरि, वाजन वाजन लग्न । मुरज. रुंज सहनाइय, वोना ताल तरंग ॥ चंपावती० ३२४-२५. वंव वाजि सोर घन घोर सादं । सब्द मिलि पंच वाजंत नादं ॥ संष सहनाइ करताल तूरं । मिलि सब्द आकास पाताल पूरं॥ वही, ३८६. अब युद्धवर्णन के दो-एक उद्धरण देखिए जिनसे इनको रूढ़ परम्परा पर प्रकाश पड़ेगा। इन्द्रावती में कवि नूरमुहम्मद ने घनघोर युद्ध का वर्णन किया है. जो इस प्रकार है :
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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