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हिन्दी प्रेमाख्यानकों का शिल्प : १४७
चंपक बेलि गुलाबन हार । फूल सेज वह रचीं अपार ॥ मलयागिरि उदीप सुखराती । चहुं दिसि वरै अगर की बाती ॥ अप्सराखंड, ८५.
चन्दायन में शय्या - वर्णन इस प्रकार है :
पालंग सेज जो आनि बिछाई । धरत पाउ भुई लाग जाई ॥ पान बने अरु फूलह भारी । सोनैं झारी हांस गुंदारी ॥ सुरंग चीर एक आन बिछावा । धरती बैस झंवन अस आवा ॥ तिहि चढ़ि सूत रवउं बिकरारा । खोंपा छूट छिटक गये बारा ॥ यह भंति करें फूल पहिबासी । करंडी चारि फूर भर डासी ॥२०७॥
प्रेमाख्यानकों में राजाओं की सेनाओं के उपयोग में आने वाले अश्व, हाथी आदि उपयोगी जानवरों की विस्तृत जानकारी मिलती है । छिताईवार्ता में अलाउद्दीन बादशाह ने सौंरसी की विदाई पर उसे जो घोड़े दिए थे वे अनेक जाति के थे :
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बरणुं तेजी ऊच तिहां तणे । ऊचे आहि कंध तिह तणे ॥ एक तीरी ते हरीओ बरनां । कंध आगरे छोटे करनां ॥ सेत तुरी चंचल गुण बने । चित्रति जानि चितौरा तने ॥ महुअ सबज सनेही बने। सीराजी मुगली हांसले ॥ उपजे सींह नदी पश्चम देस । बडी पुंछ बरणइ कबि लेस ॥ करतर काया तुरी तुखार । जरदे नीले बोर कयाह ॥ जिते भुथार काबली आहि । साठि कोस थो आवइ जाइ ॥ पोले नीले बोरु बहूत । चलत चाल ते भांभर भूत ॥ गोट बहुत परबत के आहि । तै पुर दीनी अर चौगुन थाइ ॥ पृ०१३१.
वर्णरत्नाकर में अश्वों के प्रकार इस भांति हैं - हरिअ, महअ, मांगल, कुही, कुवाल, कओस, उरज, नील, गरुड, पीअर, राओट, दोरोज, उवाह, आह, सेवाह, कोंकाह, केयाह, हराह, षौराह, रोरिह ये अनेक वालघोल से अनुअह ।
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चन्दायन में राव महर के अश्वों का वर्णन देखिए :
१. वर्णरत्नाकर, पंचम कल्लोल, पृ० २९.