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-१४४ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
नगर के हाट-वर्णन से तत्कालीन नगरों को समृद्धि का अनुमान किया जा सकता है । कई स्थानों पर चौरासी हाटों के होने के संकेत मिलते हैं । जैसे प्रद्युम्नचरित (१४११ वि० सं०) सधार अग्रवालकृत में : इक सों बने धवल आवास । मठ मंदिर देवल चउपास ॥ चौरासी चौहट्ट अपार । बहुत भाँति दीसइ सुविचार ॥ १७ ॥ मधुमालती वार्ता ( चतुर्भुजदास ) :
'बसति पुर नगरे ' जोजन च्यार । चौरासी चौहटा चौवार ॥ ३ ॥ रसरतन में हाटों का वर्णन देखिए :
पटंबर मंडित सोभित हाट । रच्यो जनु देव सुरपति बाट ॥ हूँ नग मोति बेत लाल । करैं तहँ लच्छिम मोल दलाल ॥ . कहूँ गढ़ कंचन चारु सुनार । कहूँ नट नांटिक कौतिक हार ॥ कहूँ पट पट बनें जरतार । कहूँ हय फेरत हैं असवार ॥ कहूँ गुहें मालिनि चौसर हार । कहूँ तें सवारत हैं हथियार ॥ कहूँ बरई कर फेरत पान । कहूँ गुनी गाइन साजत गान ॥ कहूँ पढ़े पंडित वेद पुरान । कहूँ नर तानत बान कमान ॥ कहूँ गनिका गन रूप निधान । कहूँ मुनि ईस करे तप ध्यान ॥ चल्या नगरी सब देखत सूर । कहूँ मृगमद्द सुगंध कपूर ॥ रहै इक नागरि नैन निहार । चलै इक पाट गवाष उधार ॥ चंपावती० १४६-१५३.
सभी इस प्रकार के वर्णन में क्यों पीछे रहते ? उन्होंने कनकहाट, शृंगारहाट और फूलहाट का सुन्दर चित्रण किया है :
पुनि देखि सिंघल की हाटा । नवौ निद्धि लछिमी सब बाटा ॥ कनक हाट सब कुंकुंह लीपी । बैठा महाजन सिंघल दीपी ॥ रचे थोड़ा रूपई ढारी । चित्र कटाउ अनेग संवारी ॥ रतन पदारथ मानिक मोती । हीर पंवार सो अनबन जोती ॥ सोन रूप सब भयउ पसारा । धवलसिरी पोर्ताहं घर बारा ॥ औ कपूर बेना कस्तूरी | चंदन अगर रहाभरि पूरी ॥
जेई न हाट एहि लीन्ह बेसाहा । ताकहं आन हाट फित लाहा ॥ कोई करे वेसाना काहू केर बिकाइ ।
कोई चला लाभ सौं कोई मूर गवांइ ॥ ३७ ॥