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हिन्दी प्रेमाख्यानकों का शिल्प : १४३
वन, उपवन, बाग, बगीचों का वर्णन इन सभी काव्यों में मिलता है । रसरतन के वर्णन में केवल वृक्षों के नाम ही गिना दिए गए हैं : सुन्योपुर मित्र बढ्यो अनुराग । विलोकित नैन मनोहर बाग ॥ रह्यो सुख संपति आनंद झेलि । घने फुल फुलह लसै द्रुम बेलि ॥ सदा फर दाड़िम सोभित अंब । बने वर पीपर नीम कदंब || महारंग नारंग निब्बू संग | लता जनु अमृत सीचि लवंग ॥ जमीरी गलग्गल श्रीफल सेव । फलै कदली फल चाहं देव ॥ षजूरिनि षारक ताल तमाल | सुधा सम दाख अनूप रसाल ॥ चमेलिय चंपक बेल गुलाब | वंधूप सरूपित सोभित लाल ॥ - चंपावती० १०० - १०३. छिताई वार्ता में भी इसी प्रकार पुष्पों और वृक्षों के नाम मात्र से संतोष कर लिया गया है :
कुसुम कुंद मचकुंद मरुवौ केवरौ केतुको कल्हार । गुलाल सेवती मोकरो सुन्दर जाइ । महंदी पदमाख केवरो अतिवर्ष चंपग पाइ |
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जाति कूजौ जुही अति गनि रहो महकाइ । सघन दाप्यो दाख. कमरख नारयंग निबुवा नारि ।
दम्म अंम जंभीर खारिक सघन सरवर पारि ॥ ३९९ ॥ कुंद खिरणी जातो फुलवादि । गनत बिच्छ को जाने आदि । लौंग लाइची बेलि अनूप | चंदन बन देखे महि भूप ॥४००॥ इत्यादि । जायसी के पदमावत को अमराइयों में भी वृक्षों को सूची ही प्रस्तुत की गई है :
फरे आँव अति सघन सुहाए। औ जस फरे अधिक सिर नाए ॥ कटहर डार पींड सों पाके । बड़हर सोउ अनूप अति ताके ॥ खिरनी पाकि खांड असि मीटी। जांबु जो पाकि भंवर असि डीठी ॥ नरिअर फरे फरी खुरहुरी । फुरी जानु इन्द्रासन पुरी ॥ पुनि महु चुवे सो अधिक मिठासू । मधु जस और खजहजा आवन नाऊं । देखा सब गुआ सुपारी जायफर सब फर फरे अपूरि । आस पास घनि इंबिली औ घन तार खजूरि ॥ २८ ॥
मोठ पुहुप जस बासू ॥
रावन अंबराऊं ॥