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१४२ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
रसरतन में मानसरोवर की शोभा देखिए :
तहं मानसरोवर सोहनं । सुर नाग मनुज नर मोहनं ॥ सजि पारि चारिहु ओरई । मन युक्ति मरकत जोरई ॥ रंग अरुन वरनह मोहई । सित नील पीतति सोहई ॥ तिहि तीर चहुदिसि काननं । चित चाह किय चतुराननं ॥ द्रुम साल ताल तमालनं । तहं करत षग वन पालनं ॥ जल मगन मनकुम पत्तनं । जिहिं मध्य मधुकर छत्तनं ॥ कलगुञ्ज गुञ्जत राजहों । जनु मान गंध्रप गाजहीं ॥ - विजयपाल० २३६ - २३९.
चतुर्भुजदासकृत मधुमालती वार्ता में मानसरोवर की शोभा मुनियों को भी लुब्ध करने वाली है :
राम सरोवर ताल की सोभा कही न जाय । सेत वरण पंकज तिहां मुनिवर रहे लुभाय ॥ प्रफुलित कमल बास महम है । वोपमा मानसरोवर लहै ॥ अबला किती इक पानी भरै | चित्रवत कुंभ सीस तें परै ॥
कलस हाथ तें गिरै । भूली मानुं बिना त भरै ॥ इत्यादि ।
उपर्युक्त कतिपय प्रेमाख्यानकों से उद्धृत सरोवरों के वर्णनों से सहज ही में पता लगाया जा सकता है कि इनमें कितना साम्य है । रूढ़ि हो जाने के कारण कुछ में तो खाली पक्षियों आदि के नाम ही गिना दिये जाते हैं । उपर्युक्त प्रेमाख्यानकों के पूर्ववर्ती 'चन्दायन' काव्य में सरोवरवर्णन के अन्तर्गत जलचर जन्तुओं के नाम इस प्रकार दिये हैं:
पैरहिं हंस मांछ बहिरा हैं । चकवा चकवी केरि करा हैं ॥ दबला ढेंक बैठ झरपाये । बगुला बगुली सहरी खाये ॥ बनलेउ सुवन घना जल छाये । अरु जलकुकुरी बर छाये ॥ पसरों पुरई तूल मतूला । हरियर पात तइ रात फूला ॥ पांखी आइ देस कर परा । कार कंरजवा जलहर भरा ॥
सारस कुरर्लाहि रात नींद तिल एक न आवइ । सबद सुहाव कान पर जाहिं रैन बिहावइ ॥ २२ ॥
१. मधुमालती वार्ता, सं० – वही, पृ० ३.