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________________ हिन्दी प्रेमाख्यानकों का शिल्प : १४१ लंक दोप कै सिला अनाई। बांधा सरवर घाट बनाई॥ खंड खंड सीढ़ी भई गरेरी। उतरहिं चढ़हिं लोग चहँ फेरी॥ फूला कंवल रहा होइ राता । सहस सहस पंखुरिन्ह कर छाता ॥ उलहिं सीप मोति उतराहों। चुहिं हंस और केलि कराहीं॥ कनक पंखि पैरहिं अति लोके । जानहु चित्र संवारे सोने ॥ ऊपर पाल चहँ दिसि अंबित फर सब रूख । देखि रूप सरवर कर गइ पिआस औ भूख ॥ पानि भरइ आवहिं पनिहारों । रूप सुरूप पदुमिनी नारों ॥ पदुम गंध तेन्ह अंग बसाहों। भंवर लागि तेन्ह संग फिराहीं ॥ छिताईवार्ता में सरोवर का वर्णन इस प्रकार मिलता है : फटिक सिला बैठक अति बनी। छाजें मौजें मंदिर तनी॥ चाप्यो घाट घटाए पाट । नीर भरै सुन्दरि के ठाट ॥ बाला अबला प्रौढा नारि । भरै णोर न्यमल (निर्मल) पनिहारि । तिन को रूपु बरनि को कहै । कहत कथा कछु अंतु न लहै ॥ सोहैं कमल कमोदिनि पान । भंवर बास रस भूलहिं न्यान ॥ निमहि हंस हंसिनी संग । भरे अनंद कुरंग कुलंग ॥ कोलति चकई चक्क चकोर । बन के जीव गुजरहिं मोर ॥ द्वैकि पंखि मटामरे घनै । जल कूकरी आरि अनगनै॥ सारिस बग्ग हंस उनहारि । निमसहि पंखि सरावर पारि॥ पुरइन कमल रहे जल छाइ । बहु फुलवारि रही महकाइ॥ - पुहुकरकृत रसरतन में सरोवर-वर्णन के कई प्रसंग आये हैं । जायसी ने जिस सरोवर के घाट और सोढ़ियों का वर्णन किया है वे मात्र लंका द्वीप से आये पत्थरों से निर्मित हैं। परन्तु पहकर ने जिस सरोवर का वर्णन किया है उसके किनारे विद्रुम के और सीढ़ियाँ मरकत मणियों से निर्मित हैं : अंगनि चौक फटिक मनि साजा । ता मधि अमल सरोवर राजा॥ विद्रुम पारि रची दिसि चारी । मरकत मनकी सिढी संवारी॥ नाना बरन सरोवर सोहै। दिजकुल केलि करत मन मोहै। -वैरागर० १४०-१४१. १. छिताईवार्ता, सं०-डा० माताप्रसाद गुप्त , पृ० ६३.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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