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________________ १४० : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक हैं।'' हिन्दी साहित्य में आचार्य केशवदास ने नगर-वर्णन में आवश्यक वस्तुओं की सूची इस प्रकार दी है : खाई, कोट, अटा, ध्वजा, वापी, कूप तड़ाग। वारनारि असती सती, वरनह नगर सभाग॥ वन, बाग, तड़ागादि का वर्णन करते समय किन वस्तुओं का उल्लेख करना चाहिए, इसका भी निर्देश आचार्य केशव ने किया है। वन-बाग एवं सरिता के उद्धरण इस प्रकार हैं :' . सुरभी, इम, धन, जीव बहु, भूत, प्रेत भय भोरं। . . झिल्ल भवन, बब्ली, विटप, दव वरनहु मतिधीर ॥६॥ बाग-वर्णन : ललित लता, तरुवर, कुसुम, कोकिल कलरव, मोर। बरनि बाग अनुराग स्यों, भंवर भंवत चहुं ओर ॥ ८॥ सरिता-वर्णन : जलचर हय गय जलज तट, यज्ञकुंड मुनिवास । स्नान दान पावन नदी, बरनिय केशवदास ॥ १४ ॥ हम यह पहले ही कह चुके हैं कि वस्तुवर्णन में रूढ़ियों का खुलकर प्रयोग हुआ है । जायसी ने पदमावत में मानसरोवर का वर्णन इस प्रकार किया है : १. 'जनैः परिवृत्तं द्रव्यक्रयविक्रयकादिभिः । अनेक जातिसंयुक्तं कर्मकारः समन्वितम् । सर्वदेवतसंयुक्तं नगरं चाभिधीयते ।' -मानसार, अध्याय १०, नगर विधान. २. आचार्य केशवदास, कविप्रिया, ७. ४. ३. विस्तार के लिए आचार्य केशवकृत कविप्रिया देखिए. ४. कविप्रिया, ७. ६; ७. ८; ७. १४. पदमावत, सं०-वासुदेवशरण अग्रवाल, पृ० ३१-३२.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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