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१३८ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
७. भील आभूषण बेचते समय राजकर्मचारियों द्वारा पकड़ा गया और राजा के समक्ष ले जाया गया।
८. राजा ने भील से वृत्तान्त जाना और वह आश्रम जाकर मृगावती और उदयन को ले आया।
९. एक चतूर चितेरे ने मृगावतो का चित्र बनाया तथा उस चित्र में मृगावती की जांघ पर तिल का चिन्ह अंकित किया।
१०. राजा को चित्रकार के आचरण पर संदेह हुआ अतः उसे भलाबुरा कहा।
११. चित्रकार ने बदले की भावना से मृगावती का एक चित्र उज्जैन के राजा चंडप्रद्योत को भेंट किया। राजा मोहित हो गया।
१२. चंडप्रद्योत ने मृगावती की माँग की। कौशाम्बी के राजा द्वारा मांग अस्वीकार कर दी गई । अतः घमासान युद्ध हुआ।
१३. अंत में मृगावती ने जैन मुनि से दीक्षा ले ली। समीक्षा ___ उपर्युक्त प्रेमाख्यानकों में प्रयुक्त कथाभिप्रायों के सामान्य अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि सभी प्रेमाख्यानकों में पक्षी-शक, गरुड, हंस आदि; दोहद-गर्भवती की इच्छा; स्वप्नदर्शन-चित्रदर्शन आदि द्वारा प्रेमोत्पत्ति; योगी का वेष धारण करना; दैवी सहायता; विरहवर्णनबारहमासा आदि द्वारा पहले सन्तानविहीन और तत्पश्चात् शिव-पार्वती या अन्य किसी की कृपा से सन्तानोत्पत्ति होना आदि आदि ऐसो कथानकरूढ़ियाँ है जो प्रायः ही आदि से अंत तक के कथाकाव्यों में प्रयुक्त हुई हैं। एक और कथानकरूढ़ि वस्तुवर्णन के रूप में कथाओं में प्रयुक्त होती रही है जिसका उल्लेख भी आवश्यक है। अतः वस्तुवर्णन के विषय में विचार करेंगे। ___ 'वस्तूवर्णन काव्य का, चाहे वह किसी विधा का काव्य हो, एक अविभाज्य अंग रहा है। भारतीय साहित्य में वस्तूवर्णन की सूक्ष्मता और रंगीनी एक स्तुत्य वस्तु रही है ।' डॉ० शिवप्रसाद सिंह का यह कथन वस्तुवर्णन के महत्त्व को रेखांकित करता है। संस्कृत साहित्य के कथाकाव्यों का जिन लोगों ने अध्ययन किया है वह अवश्य ही वस्तुवर्णन के महत्त्व से परिचित होंगे। कवि या कथाकार की विस्तृत जानकारी का