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________________ हिन्दी प्रेमाख्यानकों का शिल्प : १३७ ७. अभिज्ञान या सहदानी : वैरागर जाकर बुद्धिविचित्र चित्रकार सूरसेन को रंभा का चित्र दिखलाता है जिसे पहचानकर उसकी उन्मत्तावस्था दूर हो जाती है, उसी प्रकार सूरसेन के चित्र को देखकर रंभा अपने प्रिय को पहचान लेती है। ८. सूरसेन को मानसरोवर के किनारे से उठाकर अप्सराएँ ब्रह्मकुण्ड ले जाती हैं जहाँ वे अपनी शापित सखी कल्पलता का गन्धर्व रोति से विवाह रच देती हैं। ९. अप्सरा-नत्य : सूरसेन अप्सरा पत्नी से विवाहोपरान्त उसकी सखियों का नत्य देखता है। १०. शिव-पूजा के बहाने रंभा सरसेन से आकर मिलती है। ११. राजकुमार सूरसेन रंभा का पता लगाने को योगी-वेष धारण करता है। . १२. सूरसेन को वीणा से पशु-पक्षी मोहित हो जाते हैं। चंपावती की स्त्रियाँ वीणा सुनकर विपरीत आचरण करने लगती हैं। १३. विद्यापति नामक शुक कल्पलता के विरह का संदेश लेकर चंपावती आता है। • समयसुन्दरकृत मृगावती की कथानक-रूढ़ियां . १. जिनेन्द्र-स्तुति । ... २. रानी मगावती को रक्त में स्नान करने का दोहद हुआ। . ३. रक्त के स्थान पर राजा ने लाक्षारस से तालाब भर दिया। रानी ने उसमें स्नान किया। - ४. रानी स्नान करके तालाब से बाहर निकली तभी गरुड़ पक्षी ने मांसपिंड समझकर उस पर झपट्टा मारा और ले उड़ा। ५. घने जंगल में गरुड़ ने रानी को छोड़ दिया। वहीं एक ऋषि के आश्रम में पुत्र उदयन उत्पन्न हुआ। ६. रानी ने उदयन को राजा के नाम से अंकित एक आभूषण पहना दिया। भील द्वारा पशु-वध किया जा रहा था। उदयन ने पशु को नहीं मारने दिया और उसके बदले में वह आभूषण भील को दे दिया। १. डा० शिवप्रसाद सिंह, रसरतन की भूमिका, पृ० १०७.
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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