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१३६ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
३. चित्रकार छिताई का चित्र बादशाह अलाउद्दीन को दिल्ली जाकर दिखाता है। बादशाह उसे प्राप्त करने का उपक्रम करने लगता है ।
४. देवगिरि के किले को अलाउद्दीन घेर लेता है। फिर भी तोड़ नहीं पाता। राघवचेतन मंत्रशक्ति से हंसारूढ़ पद्मावती का दर्शन करके किले के गुप्त भेदों को जान लेता है।
५. अलाउद्दीन द्वारा प्रेषित दूतियाँ छिताई को पथभ्रष्ट करने का असफल प्रयास करती हैं।
६. छिताई का सुरंग के मार्ग से "शिव-लिंग" पूजन के लिए जाना. और अलाउद्दीन द्वारा अपहरण ।
७. सोरंसी का योगीवेष धारण कर लेना। दिल्ली के निकटवर्ती वन में वीणा निनादित करना जिससे ,समस्त जीव-जन्तु मुग्ध होकर . उसके पास आ गए।
८. एक वीणा, जिसे सोरंसी ही बजा सकता था, छिताई ने दिल्ली के प्रसिद्ध कलाकार गोपाल नायक के यहाँ रख छोड़ी थी। सोरंसी जब उसके यहां पहुंचा तो उसने वह वीणा बजा दी। छिताई को यह समाचार मिला। संगीत आयोजन में बादशाह द्वारा सोरंसी का परिचय प्राप्त होना और छिताई को उसे सौंपना । रसरतन की कथानक-रूढ़ियाँ
१. मंगलाचरण, शाहेवक्त आदि की प्रशस्ति, दुर्जन-निन्दा, सज्जनप्रशंसा आदि।
२ पूर्ववर्ती कवियों का उल्लेख ।
३. ईश्वरोपासना से सन्तानहीन दंपति को पुत्रोत्पत्ति : राजा सोमेश्वर और पटरानो कमलावती को शिवाराधना से पुत्र उत्पन्न होता है ।
४. स्वप्नदर्शन : रंभा को कामदेव सूरसेन के रूप में दर्शन देकर और उसी प्रकार रति रंभा के रूप में सूरसेन को स्वप्न दिखाकर आकृष्ट करती है।
५. आकाशवाणी : विरहाग्नि से रंभा की अवस्था क्षीण हो जाती है तभी आकाशवाणी होती है।
६. बारहमासा।