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________________ १३२ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक २१. रतनसेन बहुत सामग्रो और पद्मावती को लेकर सिंहल से विदा हुआ। २२. समुद्र का याचक बनकर धन मांगना और राजा का निषेध । २३. समुद्र में तूफान से अटककर जहाज लंका पहुँच गये जहां एक राक्षस भुलावा देकर एक अन्य समुद्र में ले गया। २४. राक्षस का राजपक्षी द्वारा लेकर उड़ जाना। २५. जहाज टूट गया, रतनसेन और पद्मावती अलग-अलग बह गये। २६. पद्मावती को लक्ष्मी ने बचाया । २७. लक्ष्मी का रतनसेन को लाने का आश्वासन । २८. रतनसेन की समुद्र ने ब्राह्मण का वेश धारणकर सहायतां को.. ओर जहाँ पद्मावती थी वहाँ ले गया।' .. २९. लक्ष्मी द्वारा रतनसेन को परीक्षा। .. ___३०. समुद्र ने अमृत, हंस, सोनहा पक्षी, शार्दूल और पारस पत्थर देकर रतनसेन को विदा किया। __३१. लक्ष्मी के दिये बाड़े में रत्न लेकर लाव-लश्कर जगन्नाथ में खरीदा और चित्तौड़ को चले। ३२. नागमती को देव ने पति के आने की सूचना दी। ३३. एक महापंडित राघवचेतन ने आकर काव्य सुनाकर राजा को वश में कर लिया। ३४. राघव द्वारा यक्षिणी-सिद्धि से प्रतिपदा को दूज का चन्द्रमा दिखाया जाना और पंडितों का अपमान । ३५. राघवचेतन को देश-निकाला। ३६. राघवचेतन द्वारा पद्मिनी का दर्शन और उसका कंगन ग्रहण करना। ३७. पद्मिनी के रूप से वह बेहोश हो गया । ३८. राघव द्वारा अलाउद्दीन से पद्मिनी के सौन्दर्य का बखान और अमोल रत्नों की सूचना। ३९. अलाउद्दीन का रतनसेन को पत्र और रतनसेन द्वारा अस्वीकृति। ४०. घमासान युद्ध ।
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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