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________________ १३० : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक १२. प्रेमबाधक तत्त्व : वन में राक्षस से युद्ध और राक्षस का मारा जाना। १२. राक्षस का प्राण किसी अन्य वस्तु में : राक्षस का प्राण इस कथा में एक अमृतवृक्ष में दिखाया गया है। १४. नायिका का पक्षी बन जाना और पुनः नायक का भटकना : इस कथा में मधु की माँ ने प्रेमा के घर पर मनोहर और मधु को मिलते देख लिया था अतः लोकभय से मधु को पानी छिड़ककर पंछी बना दिया। १५. उपनायक की सहायता से मधु पक्षी के रूप से पुनः पूर्ववर्ती नारी रूप धारण करती है। १६. बारहमासा : मधु ने संदेशवाहकों से अपना दुःख कहलाया और अपने बारहमास का दुःख भी कहा.। जायसीकृत चित्ररेखा की कथानक-रूढ़ियां १. ईश्वरस्तुति, पीर, गुरु, मित्र आदि की प्रशस्ति । २. बाह्याडम्बरों का खण्डन । ३. राजा चन्द्रभानु के यहाँ गुणवती चित्ररेखा की उत्पत्ति, ज्योति. षियों की भविष्यवाणी कि यह कन्नौज की रानी होगी। ४. कन्नौज के राजा का निःसंतान होना । तपश्चरण के बाद पुत्रोत्पत्ति । परन्तु पुत्र के अल्पायु होने की ज्योतिषियों की घोषणा । ५. प्रीतमकुंवर का काशी के मार्ग में मृत्युभय से मूच्छित होना। सिंघनदेव का उसी मार्ग से अपने कुबड़े बेटे के विवाह के लिए जाना और प्रोतमकुंवर को कुबड़े बेटे के स्थान पर वर बनने को राजी करना। ६. सिंघनदेव ने उसे बीड़ा दिया। वर के रूप में विवाह किया। सातखंड के धौरहरे पर चित्ररेखा के साथ सुलाया गया। मृत्यु की याद आते ही चित्ररेखा की साड़ी पर लिखकर काशी जाना। ७. काशी में दान देते समय व्यास जी से अचानक “चिरंजीव" का आशीर्वाद । ८. चित्ररेखा के आत्मदाह की तैयारी और इसका आयु प्राप्त कर वहाँ पहुँचना तथा चित्ररेखा को पाना ।
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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